Book Title: Rogimrutyuvigyanam Author(s): Mathuraprasad Dikshit Publisher: Mathuraprasad Dikshit View full book textPage 5
________________ [ ४ ] ४. शङ्करविजय नाटक-इसमें श्रीशङ्कराचार्यजी का सभी दार्शनिकों से, नास्तिकों से, मीमांसकाचार्य मण्डन मिश्र तथा उनकी स्त्री से, एवं जैन, वौद्ध, कापालिकों से परमरोचक शास्त्रार्थ वर्णन है। - दर्शन शास्त्रों के ज्ञान में परमोपकारी है । मूल्य १) ५. भक्त सुदर्शन-देवीभागवत से उद्ध त आस्तिकता को दृढ करनेवाला काशीस्थ दुर्गादेवी का ऐतिहासिक वीररसात्मक यह अपूर्व नाटक है। इसमें ६ दर्शनीय तिरङ्ग चित्र हैं । ६ अङ्क हैं । केवल चित्रों के ही २) रु० हो जाते हैं। इसकी कविता सरल, रोचक है। एकबार आरम्भ करके पूरा पढ़ने को जी चाहता है। इसकी उपादेयता पर यू० पी० गवर्नमेण्ट ने ८००) पारितोषिक दिया है। एकबार अवश्य देख। मूल्य २) रु० । गान्धीविजय-श्री महात्मा गान्धी के नैटाल, चंपारन और भारत के स्वराज्य प्राप्ति के आन्दोलन-प्रकार और उसमें प्राप्त दुःख व सफलता का वर्णन है । इसमें प्राकृत के स्थान पर हिन्दी है। मूल्य ।) ७. वीरपृथ्वीराजविजयनाटक-परम प्राचीन अतिजीर्ण फोटो पर से लिया गया 'गेटो' इसका मूल है। इसके साहाय्य से निर्मित होने के .. कारण इसमें प्रक्षिप्त अंश जो कि पन्द्रहवीं सदी में हुआ है, नहीं है । अतः सिद्ध है कि यह चौदहवीं सदी की पुस्तक है । हिन्दी अनुवाद सहित प्रथमावृत्ति । मूल्य केवल १) ८. रोगिमृत्युविज्ञान-रोगी को देख कर उसके अरिष्टात्मक चिन्हों ... से उसकी मृत्यु के समय का निर्णय कर सकते हैं। यह वैद्यक . शास्त्र की अपूर्व पुस्तक है। मूल्य केवल १॥) ६. केलिकुतूहल-वैद्यक शास्त्र का होते हुये भी काम शास्त्र का अपूर्व ग्रन्थ है । प्रत्येक गृहस्थ को पाठनीय है । मूल्य १॥)Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 106