Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 4
________________ म० म० दीक्षितजी की अन्य रचनाएं १. पाणिनीयसिद्धान्तकौमुदी-यह वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदीका प्रक्रिया त्मक अंश है । इसमें से फक्किका, प्रत्युदाहरण और लम्बी वृत्ति हटा दी है । अतः इससे व्याकरण का बोध केवल एकवर्ष में पूरा हो जायगा। इसमें सूत्र,वार्तिक और उदाहरण मात्र हैं । सूत्रार्थ ही तो वृत्ति है, अतः सूत्रसे ही सूत्रार्थ-प्रतीति होने से उसकी वृत्ति सर्वथा हटा दी है। अनुवृत्तिमात्र वृत्ति दी गई है। परीक्षार्थी छात्रों के लिये परमोपयोगी है। केवल पूर्वार्ध में ५० पत्र हैं । अतः दो घण्टे प्रतिदिन पढ़ने से केवल ६ मास में कौमुदी कण्ठस्थ हो जाती है । एवं व्याकरण करामलकवत् भासित हो जाता है । "कौमुदी र्याद कण्ठस्था वृथा भाष्ये परिश्रमः।” जनता में प्रसिद्धि के लिए मूल्य व्ययमात्र ३॥) पालि प्राकृत व्याकरण-इसमें केवल ७० सूत्र हैं । प्रतिदिन केवल २० मिनट ५ सूत्रों का अनुगम करने में पाली प्राकृत का १५ दिन में विद्वान् हो जाता है। प्रत्येक के २०-२० उदाहरण भी दिये गये हैं। इसके पढने के बाद नाटकों के प्राकृत की संस्कृत छाया देखने की आवश्यकता नहीं रहती है। कौन हिन्दी शब्द किस संस्कृत के स्वरूप से आय है? यह अपूर्व ज्ञान हो जाता है। इस पुस्तक में मानों गागर में सागर भर दिया गया है । मूल्य १॥) ३. भारतविजय नाटक-इसमें पाश्चात्य गवर्नमेंट के पूरे अत्याचार झाँसी की रानी का युद्ध, कांग्रेस आन्दोलन, कांग्रेसियों के दुःख, जलियाँ वाले बाग के अत्याचार और अन्त में महात्मा गान्धी जी के हाथों में स्वराज्य देकर पाश्चात्य गवर्नमेंट के जाने का. अभिनयात्मक दृश्य है। इसमें आठ चित्र हैं, उससे ही सब : घटनाओं का ज्ञान हो जाता है। साथ में हिन्दी अनुवाद है । तीन, सरल अभिनेय गान हैं । मूल्य २॥)

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