Book Title: Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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थीं। इन प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि जब तक संस्कृत या वैदिक भाषा लोक जीवन और लोक-बोलियों को आत्मसात् करती रही, तब तक बराबर उस में विकास होता रहा किन्तु जब वह शास्त्रीय नियमों में भलीभांति आबद्ध हो गई, तभी उसका विकास रुक गया । इससे जहां वह वाणी अमर हो गई वहीं उसका प्रवाह अवरुद्ध होगया और वह मृतभाषा के नाम से अभिहित की गई। यथार्थ में संस्कृत को अमरत्व रूप महषि पाणिनि ने प्रदान किया। उनके पूर्व की संस्कृत भाषा के व्याकरणिक रूपों में अत्यन्त विविधता थी । डा. पुसालकर का कथन है कि भारतीय पुराणों की भाषाविषयक अनियमितताओं को देखते हुए यह लक्षित किया गया है कि जन बोलियों से प्रभावापन्न संस्कृत के ये पुराण आधे के लगभग प्राकृतत्व को लिये हुए हैं । इस से यही समझा जाता है कि मौलिक रूप में ये पुराण प्राकृत में लिखे गये थे, जिन्हें हठात् संस्कृत में अनूदित किया गया । प्राकृतिक प्रवृत्ति का प्रभाव वैदिक ग्रन्थों तक में प्राप्त होता है । परवर्तो काल में सहज रूप से प्राकृतों का प्रभाव धार्मिक ग्रन्थों, महाकाव्यों और पुराणों पर भी लक्षित होता है । प्राचीनतम भाषा
लिखित भाषा के रूप में संसार का प्राचीनतम प्रमाण ऋग्वेद है । यद्यपि प्राचीन पाठ-परम्परा के अनुवर्तन से वेदों के मूल रूप का रक्षण होता रहा है, किन्तु भाषा वैज्ञानिक यह मानते है की रचना किसी एक समय में और एक व्यक्ति के द्वारा न हो कर विभिन्न युगों में संकलित हुई है । वैदिक रचनाएं पुरोहित-साहित्य हैं । "ऋग्वेद रिपोटी. शन्स" में ब्लूमफील्ड ने स्पष्ट रूप से बताया है कि ऋग्वेद में लगभग एक चौथाई से भी अधिक पाद-पुनरावर्त हुआ है । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल और दशम मण्डल की भाषा में भी अन्तर लक्षित होता है। ऐतहासिक दृष्टि से ऋग्वेद की रचना एवं संकलना का समय १२०० ई० पू०-१००० ई. पू. के लगभग माना जाता हैं । इस काल से साहित्यिक परम्परा सतत एवं अविच्छिन्न रही है और भारतीय आर्यभाषा का क्रमिक विकास विभिन्न अवस्थाओं में विविध रूपों में समाहित हो कर विस्तृत हुआ है । टी. बरो के अनुसार ऋग्वेद १००० ई. प. के लगभग और अवेस्ता ६०० ई. पू. के लगभग की रचनाएँ हैं । ईरानी भाषा की प्राचीन स्थिति का प्रतिनिधित्व अवेस्ता तथा प्राचीन फारसी साहित्य के द्वारा किया जाता हैं और ये हो ग्रन्थ वैदिक संस्कृत की तुलना को दृष्टि से अत्यधिक महत्व के हैं । जरथु. स्त्रीय धर्म के मतानुसार अवेस्ता उन के द्वारा सुरक्षित पवित्र लेखों का प्राचीन संग्रह है, १-विल्सन, ग्रेहम (सं) : ए लिंग्विस्टिक्स रीडर, न्यूयार्क,१९६७ में प्रकाशित स्टेनली रुन्डले
के प्रकाशित निबन्ध 'लैंग्वेज एण्ड डायलेक्ट', पृ. ८७ से उद्धृत In fact the grammarians of the day developed special rules for turning Samskirt into Prakrit, so that real Prakrit tended to be lost to the written language and the literary Prakrit became a definite mutilation of Samskrit. (p. 87) २- ए. डी. पुसालकर : वेयर द पुराणाज ओरिजनली इन प्राकृत, आचार्य ध्रव स्मारक ग्रन्थ.
भाग ३, गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद, पृ० १०३ ३-द्रष्टव्य -बरो, टी. : द संस्कृत लैंग्वेज, हिन्दी अनु., पृ. ४३
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