Book Title: Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२४. सोमप्रभाचार्यकृत 'सुमतिनाथ चरित्र': कथासामग्री एवं भाषासामग्री
डॉ. कनुभाई व्र. शेठ, अहमदाबाद प्रस्तावना
मध्यकालीन प्राकृत साहित्य में चरित्रग्रंथ विशेष रूप से जैन रचना प्रकार है । सामान्यतः इस प्रकार के काव्य में अमुक जैन सिद्धान्त अथवा धार्मिक-नैतिक मान्यता के दृष्टान्त हेतु किसी तीर्थकर का अथवा किसी यशस्वी पात्र के चरित्र का वर्णन होता है । इनमें चरित्रनायक के अनेक पूर्वभवों का वर्णन किया जाता है, जिनमें लोकप्रचलित अथवा साहित्यप्राप्त दृष्टान्त कथाओं एवं परम्परागत लोककथाओं को समाविष्ट कर लिया जाता है । प्राकृत साहित्य में जैन तीर्थंकरों के चरित्र का निरूपण करनेवाले अनेकों चरित्रग्रंथ प्राप्त होते हैं । प्राकृत साहित्य में तीर्थकर चरित्रः
नवीं-दसवीं शताब्दी से बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी तक अनेक तीर्थंकरों के चरित्र प्राकृत भाषा में पद्यात्मक अथवा गद्यात्मक और कई बार गद्यपद्यात्मक रूप में लिखे हुऐ प्राप्त होते हैं । इनमें वर्धमानसूरिकृत 'आदिनाथ चरित्र' [ईस्वी ११०३], सोमप्रभाचार्यकृत 'सुमतिनाथ चरित्र' [ईस्वी ११७७ से भी पूर्व], देवसूरिकृत 'पद्मप्रभुस्वामीचरित्र [ईसाकी १३वीं शती], लक्ष्मणगणिकृत 'सुपार्श्वनाथचरित्र [ई. स ११४३], यशोदेव कृत 'चंद्रप्रभस्वामी. चरित्र [ईस्वी १११२], अजितसिंहकृत 'श्रेयांसनाथचरित्र' [ईस्वी १११६], चन्दप्रभकृत 'वासुपूज्यस्वामीचरित्र' [ईस्वी ११४३], नेमिचन्द्रकृत 'अनन्तनाथचरित्र' [ईस्वी ११०४], जिनेश्वर कृत 'मल्लिनाथचरित्र, श्रीचन्द्रकृत 'मुनिसुव्रतचरित्र' [ईसाकी १२वीं शती], मलधारी हेमचन्द्रकृत 'नेमिनाथचरित्र' [ईस्वी ११७०], देवभद्रसूरिकृत 'पार्श्वनाथचरित्र' [ईस्वी १११२], गुणचन्द्रगणिकृत 'महावीरचरित्र' इत्यादि ग्रंथ उल्लेखनीय हैं । इन चरित्रों में विपुल प्रमाण में कथासामग्री प्राप्त होती है । प्रस्तुत लेखमें यावत् अप्रकाशित सोमप्रभाचार्यकृत 'सुमतिनाथचरित्र' में प्राप्त कथासामग्री एवं भाषासामग्री का निर्देशमात्र ही किया है । सुमतिनाथा कथा सामग्री
'कुमारपाल प्रतिबोध' [ईस्वी ११८५] के कर्ता विजयसिंहसूरि के शिष्य सोमप्रभाचार्यने प्राकृतभाषामें पांचवें तीर्थंकर के चरित्र का निरूपण करते हुए चरित्रकाव्य के रूपमें 'सुभतिनाथचरित्र' [९८२१ श्लोक प्रमाण की रचना की है। इसमें जैन धर्म के सिद्धांतोंका प्रतिपादन करनेवाली या विवेचन करनेवालो अनेक लोक प्रचलित दृष्टांतकथाओं एवं किंवदंतियोंका समावेश किया गया है । प्रस्तुत चरित्रमें प्राप्त अनेक कथाओं, कथापकृतियों और कथाघटकों के विषय में, खास तोर पर मध्यकालीन गुजराती साहित्य से समानता रखनेवाली कथासामग्री के प्रसंग में तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययनार्थ अंगुलीनिर्देश किया गया है । अनेक स्थानों पर भारत के बाहर प्राप्त कथा-सामग्री के प्रसंग में भी सूचना दी गई है । _ अन्यत्र अनेक स्थानों पर प्राप्त होने वालो कथएँ जैसे पुण्यहीन, पुण्यसार, वरदत्त, जयवर्मा, कुबेरदत्त, नंदन, समुद्रदत्त, अमरसेन--वयरसेन, सुन्दर, सुदत्त, शीलवती, नयसुन्दर,
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