Book Title: Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 211
________________ 170 ३. शील की महिमा दर्शाने वाली 'शोलवतीकथा' भी प्राचीन मध्यकालोन गुजराती में लोकप्रिय हुई है । इस कथा पर निम्नलिखित पाँच कृतियाँ प्राप्त होती हैं । (१) कवि जयवंतसूरिकृत श्रृंगारमंजरीचरित्र-शीलवतीचरित्र रास [ ई. स. १५५८ ] (२) मुनि देवरत्नकृत 'शीलवती चौपाई' [ई. स. १६४३ ] (३) मुनि दयासारकृत 'शीलवती चौपाई' [ ई. स. १६४८ ] (४) कवि कुशलधीरकृत 'शीलवती चतुष्पदिका' [ई. स. १६६६] (५) कवि जिनहर्षकृत-'शीलवती रासप्रबंध' [ ई. स. १७०२] यह सब इस कथा की लोकप्रियता का सूचक है। [इस कथा की विकासयात्रा के विषय में विस्तृत चर्चा लेखक द्वारा तैयार किए गए श्रृंगारमंजरीचरित्ररास नामक महानिबन्ध में की गई है ।] ४. भाव के बिना दानादि सब व्यर्थ है-इसको प्ररूपित करनेवाला मुनि क्षुल्लक का कथानक भी प्राचीन मध्यकालीन गुजराती में प्राप्त होता है । इस सम्बन्ध में ये तीन कृतियाँ उल्लेखनीय हैं । (१) पद्मराजकृत क्षुल्लककुमार राजर्षिचरित्र [ई. स. १६११] (२) मानसिंहकृत क्षुल्लककुमार चौपाई [ई. स. १६१६ ] (३) मेघनिधानकृत क्षुल्लककुमार चौपाई [ई. स. १५३२] ५. 'पुरुषसिंह कथानक' में संसार के विषय-सुख की क्षणिकता का वर्णन करने वाला 'मधुबिन्दुदृष्टांत' प्राप्त होता है । इस दृष्टांत का जैन परम्परा में व्यापक तौर से प्रचार-प्रसार हुआ है। 'वसुदेवहिण्डी' [ई.स. ५ वीं शती से प्रारभ्म कर के संस्कृत-प्राकृत में इसके अनेकों रूपान्तर मिलते हैं। जैनेतर परम्परा में इसका मूल महाभारत में प्राप्त होता है जो इसकी लोकप्रियता प्रकट करता है । यह दृष्टांत भी मध्यकालोन गुजराती में रचित यशोविजयजी के 'जम्बुस्वामीरास' में दिखाई देता है। [इसके अनेकों रूपान्तरों की चर्चा प्राकृत के प्रखर पंडित प्रो. हीरालाल कापडियाने उनके 'जैन सत्यप्रकाश' में लिखे गये लेख में की है। तत्पश्चात् अन्य अनेक रूपान्तरों के संबंध में डॉ र. म. शाहने उनके साधारणकविकृत 'विलासवई कहा' नामक महानिबन्ध की प्रस्तावना में चर्चा की है-यहाँ पर यह उल्लेखनीय है । विभाग २. दूसरे विभाग में अनेक ऐसी प्राकृत कथाओं को गिनाया जा सकता है जिनकी मुख्य घटनाएँ तो वही रही हैं परन्तु मात्र उनमें नाम का अन्तर अथवा कोई अन्य अल्प भेद किया गया है। ऐसी कथाओं ने प्राचीन मध्यकालीन गुजराती रास, चरित्र, चौपाई आदि कथात्मक साहित्य में स्थान प्राप्त किया है। इनमें निम्न कथाओं का उदाहरण के लिए उल्लेख किया जा सकता है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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