Book Title: Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 213
________________ 172 (३) गुरुनिश्रा के बारे में प्राप्त 'विपुलमती कथा' में 'अशक्यको शक्य कर दिखाने की चुनौती को स्वीकार करनेवाली पत्नी' नामक कथाप्रकृति मिलती है । स्त्री के बनावटी या वास्तविक अभिमान को तोड़ने के लिये पति उसको अपना सामर्थ्य सिद्ध करके दिखाने की चुनौति देता है । स्त्रो इसे स्वीकार कर पति की मांग के अनुसार असाधारण वस्तु को अपनी चतुराई और दक्षता से सिद्ध कर देती है । यह कथाप्रकृति का समान्य रूप है। प्रस्तुत कथाप्रकृति प्राचीन भारतीय साहित्य में संस्कृत, प्राकृत और प्राचीन गुजराती साहित्यमें उपलब्ध है। भारत-बाह्य यह कथाप्रकृति एशिया और यूरोप जैसे देशोमें भी प्रचलित है। प्राचीन गुजराती में प्रस्तुत कथाप्रकृति सर्व प्रथम कवि अभयसोम कृत 'मानतुंग-मानवती रास' [ई. स. १६७७ ] में मिलती है । इसमें मानवती अपने पति मानतुंग की ओरसे दो गयी चुनौती को सिद्ध कर दिखाती है । बादमें यह कथा-घटक मध्यकालीन गुजराती कवि शामलकृत सिंहासन बत्तीसी' के अन्तर्गत स्त्री-चरित्र की कथा में मिलता है । इसी कथाप्रकृति वाली एक अर्वाचीन कथा 'स्त्री-चरित की नवीन बातें' के अन्दर मिलनेवाली 'ननु भट्ट और उसकी पत्नी गुणसुंदरी की कथा' में भी यह कथापटक प्राप्त होता है। [देखिए, स्त्रीचरित्र की नवीन बातें : प्र. महमदभाई और महमद कागदी] भारतबाह्य उपलब्ध रूपान्तरों में बोकेशियाकृत डेकोमेरोन के अन्तर्गत बान्ड और गीलटाकी कथा [ई. स. १३वीं सदी] तथा शेक्सपीयर कृत 'ओल वेल्स घेट ऐन्डस वेल' नामक नाटक में भी यह कथा-प्रकृति दिखाई देती है। यहाँ इन सब रूपान्तरों का तुलनात्मक अभ्यास किया गया है । [इसकी चर्चा डॉ. जनकभाई दवे ने की है । देखो श्री महावीर जैन विद्यालय, सुवर्ण महोत्सव ग्रंथ, मुंबई, १९६७, भाग १, पृ. १९६-२०८] (४) प्रस्तुत ग्रंथ में प्राप्त राजसिंहकुंवर-सुमति कथा में दोनों पात्र एक सरोवर के समीप विश्राम करते हैं । उसी समय एक विद्याधरी आती है और स्त्री-स्वरूप प्राप्त राजसिंह कुंवर को औषधि-लता द्वारा पुन: पुरुष बना देती है । इस कथाप्रसंग में दिव्य विद्या या दिव्य वस्तु [औषधि ] द्वारा रूपपरिवर्तन करने का कथाघटक संस्कृत-प्राकृत कथाओं में अनेक जगह मिलता है । संस्कृत में यह सोमदेवभट्टकृत 'कथासरित्सागर' के शशांकवती लंबक के बाईसवें तरंग में मनुस्वामी की कथा में प्राप्त होता है। प्रस्तुत कथाघटक वाली कथाएँ प्राचीन गुजराती में भी प्राप्त होती हैं । उदयभानुकृत 'विक्रमसेन रास' में जडीबूटी के प्रभाव से रूपपरिवर्तन करने का प्रसंग आता है, यह उपयुक्त कथा प्रसंग की समानता रखे हुए है। शिवदासकृत रूपसेन-चतुष्पदिका नाम को एक अन्य रचना में भी जड़ीबूटी द्वारा रूपपरिवर्तन का उल्लेख मिलता है। [इसकी चर्चा के लिए देखिए शिवदासकृत रूपसेन-चतुष्पदिका-डो. कनुभाई ब. शेठ, फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९६८, पृ ४-१०] उपर्युक्त कथाघटकवाली कथाऐं भारत और भारतबाह्य देशों के साहित्य में एक या दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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