Book Title: Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 212
________________ 171 (१) अतिलोभ के दृष्टांत के रूपमें मिलनेवाली निधिसार की पुत्रवधू ऋद्धिमती की कथा अल्प भेद तथा नाम भेद के साथ मध्यकालीन गुजराती में यशोविजयजीकृत 'जम्बुस्वामी रास' के अन्तर्गत मिलने वाली देवदत्त की पुत्रवधू दुर्गिला की कथा के रूप में मिलती है। (२) बिना विचारे किये गये कार्य पर दृष्टांत रूप से मिलने वाली 'सोमदेव-मित्रवती कथा' कुछ अल्प भेद तथा नामभेद के साथ प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती में प्राप्त अंजनासुन्दरी तथा मृगांकलेखा की कथा के साथ समानता रखती है। इन दोनों ही कथाओं का निरूपण करने वाली क्रमशः आठ और बोन कृतियां प्राप्त होती हैं। विभाग ३. तीसरे विभाग में कथाओं में मिलने वाली [समानता रखने वाली] कथाप्रकृतिओं को गिनाया जा सकता है । सुमतिनाथचरित्र में उपलब्ध अनेक कथाओं के अन्तर्गत विविध कथा-प्रकृतियाँ एवं कथाघटक प्राप्त होते हैं । यहाँ पर खास तौर से प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्य में मिलने वाले अनेक साम्यों के रूपांतर संक्षिप्त रूप में दिए गए हैं। सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ कया-प्रकृति अथवा कथाघटक के विकास का तुलनात्मक अभ्यास अनेक दृष्टियों से रसप्रद होता है-यह स्वाभाविक ही है । (१) मेघराजाकी रानी मंगलादेवी के गर्भ में पांचवें तीर्थंकर-सुमतिनाथ आते हैं। उस समय वहाँ के चक्री चंद्रमणि की दो पत्नियों के बीचमें धन और पुत्रके बारें में विवाद उपस्थित होता है। उस विवाद का सच्चा निपटारा तीर्थंकर को माता मंगलादेवी करती हैं । इस प्रसंग में 'दो स्त्रियाँ और बालक' नामके कथाघटक का प्रयोग मिलता है । प्रस्तुत कथाघटक का भारत और भारतबाह्य प्रदेश के कथासाहित्य में व्यापक रूप में प्रचार-प्रसार हुआ है । जैन परंपरा में यह आगमसाहित्य में- नंदीसूत्र की मलयगिरि की टीका [ई. स. १२ वीं शताब्दी में प्राप्त होता है। [उसकी चर्चा के लिये देखिए, 'ऐक आरख्यायिका का मूल', डॉ. मजुलाल मजमुदार, लोकगूर्जरी, अहमदाबाद, १९६८, अंक-५, पृ. ५५७-५६१] । प्राचीन गुजराती में भी एक गद्य आख्यायिका में यह दृष्टांत मिलता है। यह दृष्टांत कथा, बाइबल के 'प्राचीन करार' में 'राजा सोलोमान का न्याय' के रूपमें उल्लेखित है। इस दृष्टांतके अन्य इझरायली और तिब्बती रूपान्तर भी प्राप्त होते हैं। [See The Indian Historical Quarterly, Vol. XIV, No. 4, pp. 344-354] (२) प्रस्तुत कृति में प्राप्त निधिकुंडल-पुरंदरयशा नामक अवांतर कथा में भविष्य के भव के वर्णन में प्राप्त ललितांग-उन्मादन्ती कथा में चार विवाहार्थिओं की कथा है । इस एक सुंदरी और चार विवाहार्थिओं के कथाघटक का मूल संस्कृत-प्राकृत में, आवश्यक-चूर्णि [कर्ता जिनदासगणि, ई. स. ६७६] में प्राप्त ‘एक कन्या और तीन पति' वाली कथा में देख सकते हैं । यह कथाघटक सोमदेवभट्टकृत संस्कृत 'कथासरित्सागर' में प्राप्त वैताल पंचविंशतिका में मिलता है। प्रस्तुत कथाघटक का गुजराती रूपान्तर गुजराती कवि शामलकृत 'वैतालपच्चीसी' की २२ वीं वार्ता में है। [इसको चर्चा के लिये देखिये प्रो. हीरालाल र. कापडिया, 'जैनसत्यप्रकाश' वर्ष १३, अंक ८९, पृ. १५७-१५८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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