Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan Author(s): Rashmi Pant Publisher: Ilahabad University View full book textPage 4
________________ की काव्यशास्त्रविषयक मान्यताओं पर विचार करने का अवसर प्राप्त होगा। प्रस्तुत शोध - प्रबन्ध "प्रमुख जैनाचार्यों का संस्कृतकाव्यशास्त्र में योगदान* इसी दिशा में एक विनम प्रयास है। ___जैनधर्म प्रारम्भ से ही बहुव्यापी तथा बहुजीवी धर्म रहा है उसकी परम्परा आज भी अविच्छिन्न रूप ते विद्यमान है। साहित्य की प्रत्येक विधा को न्यूनाधिक रूप से जैन - मनीषियों ने अपनी प्रतिभा द्वारा संवारा है। धर्म - दर्शन तथा आचार - नियम के अतिरिक्त व्याकरप, साहित्य, कोश आदि विषयों पर अनेक ऐसे गन्थ उपलब्ध हैं, जिनके रचयिता जैन थे। काव्यशास्त्र जैसे गम्भीर विषय पर भी जैनाचार्यो द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। जैनाचार्यों की मूल भाषा प्राकृत है, परन्तु कालान्तर में उन्होंने संस्कृत भाषा को अपनी भावा भिव्यक्ति का साधन बनाया क्योंकि ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों में संस्कृत - भाषा का प्रचार - प्रसार था। इस भाषा का अध्ययन व चिन्तन - मनन न करने वालों के लिये अपने विचारों को सुरक्षित रख पाना कठिन हो गया था। भारतीय दार्शनिक दर्शन सम्बन्धी गट तत्वों को अपने ग्रन्थों में संस्कृत भाषा में ही संजोते थे। साथ ही तत्कालीन समाज में संस्कृत भाषा में लिखना तथा शास्त्रार्थ आदि में संस्कृत - भाषा का प्रयोग करना विद्वत्ता का प्रतीक बन गया था। तर्क,Page Navigation
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