Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 3
________________ प्राक्कथन सामान्यतया कवि के कर्म को काव्य कहा जाता है। अत: सर्वप्रथम काव्य के साथ शास्त्र पद जोड़कर काव्यशास्त्र नाम प्रयुक्त हुआ है। काव्यशास्त्र विषयक गन्यो' को भामह, रूट, वामन आदि आचार्यों ने "काव्यालंकार' संज्ञा से अभिहित किया। अत: कालान्तर में अलंकारशास्त्र का भी प्रयोग होने लगा। पैकि शब्द तथा अर्थ के साहित्य (सहितयो: भावः साहित्यस) का नाम काव्य है। अत: इसे साहित्यशास्त्र भी कहा जाता है। इस प्रकार काव्यशास्त्र, अलंका रशास्त्र और साहित्यशास्त्र नाम एक ही अर्थ में प्रयुक्त किये जाने से पर्याय ही हैं। साहित्य का बहुत व्यापक अर्थ है। इसमें सर्जनात्मक और अनुशासनात्मक या समीक्षात्मक साहित्य सभी कुछ आ जाता है। अनुशासनात्मक साहित्य सर्जनात्मक साहित्य का नियामक है। अलंका रशास्त्र का सम्बन्ध इसी अनुशासनात्मक या समीक्षात्मक साहित्य से है। अत: इसका ज्ञान अत्यावश्यक है। अद्यावधि जिन अलंकारशास्त्रों का शोध-दृष्टि से अध्ययन किया गया है, उनमें जैनाचार्यों द्वारा रचित अलंकारशास्त्रों की गफ्ना स्वल्प है, अत: उनकी शोध - खोज आवश्यक है जिससे सुधीजनों को जैनाचार्यो

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