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और मागध आदि प्रान्तों में जैनश्रमण अधिक थे, अतएव ब्राह्मणों ने इन प्रान्तों में तीर्थयात्रा के अलावा जाने की धार्मिक तौर पर मनाही कर दी थी।
क्योंकि उनके यहाँ तो स्पष्ट-नीति है कि हस्तिना तायमानोऽपि न गच्छेज्जैनमन्दिरम।' अर्थात् हाथी से मारे जाने की स्थिति उत्पन्न होने पर भी जैनमन्दिर नहीं जाना। एक प्रसिद्ध जैनाचार्य विद्यानन्द स्वामी हुये, जिन्होंने आप्तपरीक्षा, तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक आदि अनेकों महान् ग्रन्थों की रचना की, वे मूल में वेदान्त के बहुत बड़े आचार्य थे। एक दिन वे पाँच सौ शिष्यों के साथ जा रहे थे, तो रास्ते में एक जैन-मन्दिर में किसी जैन मुनिराज के मुँह से उन्होंने देवागम-स्तोत्र' नामक स्तुति का पाठ सुना। वह सुनते ही उनके विचार बदल गये, और वे स्वयं तो जैन साधु बने ही, साथ ही उनके सारे शिष्य भी जैनधर्म में दीक्षित हो गये। तभी से जैनेतरों में यह कहावत प्रचलित हो गई की भले ही हाथी के पैर के नीचे आकर मर जाना, किन्तु जैन-मन्दिर में नहीं जाना, उसके सामने से भी नहीं गुजरना, नहीं हो तुम भी जैन बन जाओगे।
तीर्थकर महापुरुषों के अनेकों कल्याणकों के पुण्य-सान्निध्य से पवित्र हुई आधुनिक 'बिहार' प्रान्त की भूमि में तीन प्रमुख-क्षेत्र थे, जिन्हें 'अंग', 'मागध' एवं 'विदेह' के नामों से जाना जाता है। इनमें 'अंग'-देश 'चम्पावती' या चम्पापुर' के नाम से प्रसिद्ध था, जिसे आज 'भागलपुर' के नाम से जाना जाता है। मगधदेश राजगृह' (राजगीर) एवं इसके समीपवर्ती प्रदेश का नाम था, जिसमें 'नालन्दा' (नालग्राम) आदि प्रसिद्ध नगर हैं। ये दोनों प्रान्त गंगा-नदी के दक्षिणी-भाग में स्थित थे तथा गंगा-नदी के उत्तरी-भाग में विदेह' प्रदेश था. जिसमें 'वैशाली' नगरी अतिप्रसिद्ध थी। इसप्रकार गंगा-नदी ने बिहार-प्रान्त को दो भागों में विभक्त कर रखा था, जो क्रमश: 'उत्तरी बिहार' एवं 'दक्षिणी बिहार' के नाम से आज भी जाने जाते हैं। गंगा के उत्तरी-भाग को उत्तरी बिहार' कहा जाता है, इसी को प्राचीनकाल में विदेह-जनपद' या विदेह-देश' कहते थे। तथा गंगा नदी के दक्षिणी-भाग के प्रदेश को 'दक्षिण-बिहार' कहा जाता है, इसी के अन्तर्गत प्राचीनकाल से 'अंग' एवं 'मगध' देश आते थे। ___ यह एक सुखद-संयोग है कि इन देशों-प्रदेशों का नामकरण आदि-तीर्थंकर ऋषभदेव के दो पुत्रों के नाम पर हुआ है। ज्ञातव्य है कि दीक्षा लेने के पूर्व श्री ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को अलग-अलग स्थानों का राजा बना दिया था। उनमें से कई पत्रों के नाम पर उनके राज्यों का नाम पड़ा। ऐसे पुत्रों के नाम हैं— कुरु (कुरुदेश-पश्चिमी उत्तर प्रदेश), अंग (अंगदेश-भागलपुर क्षेत्र), बंग (सम्पूर्ण बंगालप्रदेश), कौशल (कौशलप्रदेश-अयोध्यासंभाग), कलिंग (कलिंगदेश या दक्षिणी उड़ीसा), मागध (मागधदेश या दक्षिणी बिहार) विदेह (विदेहदेश), काश्यप (काश्मीर, यह ध्यातव्य है कि सम्राट अकबर के जमाने में काश्मीर में जैनों का व्यापक प्रभाव था, और उसने अपनी 'आईने-अकबरी' नामक पुस्तक में इसका
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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