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है। इसका विकास ई० पू० ६०० से ई० १०.० तक माना जाता है। पालि
और अपभ्रंश भाषा को भी प्राकृत परिवार के अन्तर्गत माना जाता है । इनकी अपनी स्वतन्त्र इकाई होने से इन्हें प्राकृत से पृथक् भी माना जाता है। हिन्दी आदि आधुनिक भाषाओं का विकास प्राकृत (प्राकृत >अपभ्रंश > हिन्दी आदि) से माना जाता है। प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत
प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के विषय में जो प्रमाण एवं मत उपलब्ध हैं वे निम्न प्रकार हैं
(अ) संस्कृत से प्राकृत की उत्पत्ति--प्राकृत की प्रकृति संस्कृत है 'प्रकृतिः संस्कृतम् । तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम्'।' अर्थात् प्राकृत भाषा की प्रकृति संस्कृत है । अतः संस्कृत से जन्य भाषा प्राकृत है। इस अर्थ की पुष्टि निम्न ग्रंथों के उद्धरणों से की जाती है--
(१) प्रकृतिः संस्कृतम् । तत्र भवं प्राकृतमुच्यते । रे (२) प्रकृतेः आगतं प्राकृतम् । प्रकृतिः संस्कृतम् । (३) प्राकृतस्य तु सर्वमेव संस्कृतं योनिः ।। (४) प्रकृतेः संस्कृतायास्तु विकृतिः प्राकृती मता।" (५) प्रकृतेः संस्कृताद् आगतं प्राकृतम् ।। इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है।
(ब) छान्दस् से प्राकृत की उत्पत्ति-डा० नेमीचन्द शास्त्री जैसे विचारकों का मत है कि संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषायें किसी एक स्रोत से विकसित होने १. सिद्धहेमशब्दानुशासन, ८.१.१. २. मार्कण्डेय; प्राकृतसर्वस्व, १.१. ३. धनिक, दशरूपकवृत्ति, २.६०. ४. कर्पूरमञ्जरी, संजीवनी टीका (वासुदेव) १.८-९. ५. षड्भाषाचन्द्रिका (लक्ष्मीधर), श्लोक २५. ६. वाग्भटालंकार टीका (सिंहदेवगणि), २.२.
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