Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्रं . प्रदेशी- म्यहं श्रीजिनवर्धमानं ॥ २ ॥ संसारवारांनिधियानपात्रं । निजात्मा नावालयलीनचित्तं ॥ सुदर्शन दायकनावयुक्तं । नमाम्यहं श्रीजिनवर्धमानं ॥ ३ ॥ प्ररूपितो इंदविधः सुधर्म-स्त्रैलोक्यकब्या विधायकश्च ॥ सर्वपदेशर्षिमसात्मरूपं । नमाम्यहं श्रीजिनवर्धमानं ॥४॥ त्वदीयन्नाषामृतपान: योग-र्मयार्जितं दशनमत्र शुद्धं ।। यथार्थषरुऽव्यविकासकं च । नमाम्यहं श्रीजिनवर्धमानं ॥५॥ तुन्यं नमः शत्रुनिकंदनाय । तुन्यं नमो विश्ववित्रषणाय ।। तुभ्यं नमोलो ककरूपकाय । तुज्यं नमो विश्वधराधिपाय ॥ ६ ॥ एवं रम्यार्थपदोपेतं च यवंदनं विधाय कृतात स्तव सूर्याजो हृदय तवाजिनध्यानो निजात्मश्रयालाजाय जिनरूप मनासावयन् प्रमोदतिरेकात्मनु स्तवातम्म. सुदर्शनझानगुणाधिकश्च । ममात्मगेहे खबु सूर्यतुल्यः ॥ अज्ञानतामिस्रविनाशनाय । जिनेश्वर वं खल्नु शनपूज्यः ॥ १ ॥ धर्मस्त्वया वाणकृते त्रिलोक्याः । प्ररूपितः सुष्टुममा धावैः । त्वदीयसद्द. र्शनभावही नै-:व प्रलेभे खलु शुध्बोधः ॥ २॥ सिघार्थवंशोद्भवमुक्तरूपो । भवाब्धिमङहरया नपात्रं । त्वद्भक्तितो मेऽत्र सुदर्शनाप्ति-नवे नवे वीर नवत्वमेया ॥३॥ पादांबुजं ते खलु मोक्ष खदमी-र्खब्ध्वा स्थिता या चपलापि नित्यं ॥ प्रनावतस्ते धरणीतलेऽपि । मारीतीनां नो हि जयं For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 147