Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan Author(s): Tejsinh Gaud Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ अभिमत मुझे डॉ.श्री तेजसिंह गौड़ की शोध कृति "प्राचीन एवं मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म : एक अध्ययन" की पाण्डुलिपि का अध्ययन करने का सुअवसर मिला। मालवा के जैनधर्म विषयक इतनी बहुविध सामग्री एक स्थान पर देखकर बड़ा संतोष प्राप्त हुआ। विद्वान लेखक ने जैन साहित्य, धर्म एवं दर्शन पर गहरा चिंतन किया है और जैन मत के शीर्ष पुरुषों के मध्य अपनी व्याप्ति दी है। एक लेखक, सम्पादक एवं शोधकर्ता के रूप में वे जैन मत के विभिन्न प्रमुख सम्प्रदायों में ख्यात हैं। इस कारण सहज ही उनका ग्रंथ श्रमसाध्य एवं प्रामाणिक माना जा सकता है। दस अध्यायों में विभक्त ग्रंथ का कलेवर मालवांचल में जैनधर्म की भूमिका के विभिन्न पक्षों एवं पहलुओं का सविस्तार विवेचन करता है। इन अध्यायों में अध्ययन के स्रोत एवं मालवांचल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तो पातनिकी के रूप में दी ही गई है, साथ ही जैनधर्म के भेद-उपभेद, जातियाँ, गोत्र एवं विभिन्न शाखा-प्रशाखाओं की भी विवेचना की गई है। पुरा-प्रमाणों के आधार • पर भी इस अंचल के जैनधर्म की मीमांसा जैन-कला, जैन-मंदिरों एवं जैन-तीर्थों पर केन्द्रित होकर की गई है। ग्रंथ की सबसे बड़ी भूमिका अंचल से संबंधित जैन वाइमय, शास्त्र-भण्डार, जैनाचार्य एवं उनके अवदानों की विशद चर्चा की है। वस्तुतः एक ग्रंथ में इतनी सामग्री, जिसमें अधिकांश खोजपूर्ण एवं मौलिक है, समेटना सरल नहीं है, किंतु डॉ.गौड़ ने इसे सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। इस बहुप्रतीक्षित ग्रंथ के प्रकाशन के लिये मैं लेखक एवं प्रकाशक को भरपूर साधुवाद देता हूँ। पूरा विश्वास है कि भारत के जैन-वाङ्मय में यह कृति अति उपादेय एवं स्वागतार्ह सिद्ध होगी। मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है. कि चर्चा डॉ.गौड़ के शोध-प्रबंध की तो हो ही रही है, आनंद तो तब होगा जब कोई सुधी शोधकर्ता उन पर और उनके बहुविध अवदानों पर अनुसंधान करें, उनके श्रम और अनवरत साधना पर प्रकाश डाले, तब ही लेखक के साथ न्याय होगा। -डॉ.श्यामसुन्दर निगम निदेशक, श्री कावेरी शोध संस्थान समर्पण, 34, केशवनगर, हरीराम चौबे मार्ग, उज्जैन-456010. (vi) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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