Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan Author(s): Tejsinh Gaud Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala View full book textPage 7
________________ दिखाया गया है, जो पठनीय एवं मननीय है। श्वेताम्बर परम्परा में गच्छ, उपगच्छ एवं मान्यता के साथ दिगम्बरों में विभिन्न गच्छ भेद का सुंदर वर्णन समाविष्ट किया है। चौथे अध्याय में जैन धर्मानुयायियों की विभिन्न जातियाँ एवं कुल गोत्र का पूरा वर्णन इसमें आलेखित है। अनेक प्रकरण हैं जिनसे कई विषयों का स्पष्टीकरण एवं विवरण प्रस्तुत किया है। . पंचम अध्याय में मालवा में जैनों के अपने स्थापत्यों का निर्माण, प्रारम्भिक काल एवं मध्यकाल में कैसा था. वह स्थापत्य उसका भिन्न-भिन्न रूप से गुप्तकालीन राजपूतकालीन का दिग्दर्शन प्रस्तुत है। गुप्त एवं राजपूत कालीन मूर्तियों के निर्माण का भी अच्छा उल्लेख किया गया है। षष्ट अध्याय में मालवा में जैन तीर्थों की अच्छी खासी जानकारी दी हैं, जिसमें श्वेताम्बर एवं दिगम्बरों के तीर्थ क्षेत्र अतिशय क्षेत्र एवं प्रभावक तीर्थों का ऐतिहासिक वर्तमान तक वर्णन प्रस्तुत किया है जो दृष्टव्य है। सप्तम अध्याय में मालवा में विभिन्न जैनाचार्यों/मुनियों ने विपुल मात्रा में साहित्य सृजन किया है। उसी जैन साहित्य का दिग्दर्शन इस अध्याय में किया गया है। __अष्टम अध्याय में भारतवर्ष में जैन शास्त्र भण्डारों का बाहुल्य रहा है। इस अध्याय में मालवा के जैन शास्त्र भण्डार, शास्त्रों का रखरखाव, प्रतिलिपिकरण आदि का विवरण दिया गया है। ___ नवम अध्याय में जैनाचार्यों का जन्म कहीं होता है और उनकी कर्मस्थली कहीं ओर होती है। मालवा में प्रमुख रूप से विचरण करने वाले जैनाचार्यों का परिचय इस अध्याय में दिया गया है। इसमें अनेक ऐसे आचार्यों का भी परिचय है, जिनका जन्म भी मालवा में ही हुआ। अपने हाथ में रहे इस प्राचीन एवं मध्यकालीन युग में जैनधर्म शोध ग्रन्थ को मननीय, दर्शनीय, पठनीय सामग्री सह गौरव गाथा का आलेखन हर एक पाठक की अनेकशः जिज्ञासाओं का समाधान करता है। यह शोध प्रबंध ग्रंथ भविष्य में अनेक शोधार्थियों को एक अनुपम देन स्वरूप बनेगा। - मालव में प्राचीन युग का दर्शन कराते मध्य युग की अनेक विभूतियों एवं अनुभूतियों का वर्णन अपने आप में असाधारण है। श्री गौड़ सा. का यह श्रम अनेक अध्येताओंका मार्गदर्शक एवं अतीत की विस्मृत स्मृतियों को उद्घाटित करने वाला होगा। मैं श्री गौड़ सा. का धन्यवाद के साथ अभिनंदन करता हूँ कि आपने यह आलेखन किया। भविष्य में ऐसी कृति प्रदान करने की आपकी भावनाएँ सफल हो, यही कामना। .. . .. -आचार्य जयन्तसेनसरि विजयवाड़ा (आ.प्र.) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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