Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala View full book textPage 7
________________ घटना, स्थान, व्यक्ति और समय के लिये इतनी गड़बड़ है कि स्थान मिलता है तो व्यक्ति का पता नहीं और व्यक्ति स्थान मिलता है तो समय ठीक नहीं मिलता है इस हालत में उनपर कैसे विश्वास किया जाय ।। शान्ति-जिस बात का आपके इतिहास में नाम निशान तक भी नहीं मिलता है वह वंशावलिए या प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख सहज ही मिल पाता है क्या यह कम महत्व की बात है अब रहा व्यक्ति स्थल समय और घटनाएं इसके लिये आप लोग की कमजोरी है कि आपके सामने ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं तब उनका संशोधन करने में थोड़ा सा ही कष्ट न उठाकर अनादर की दृष्टि से उपेक्षा कर कह देते हो कि यह सामग्री इतिहास के लिये अनोपयोगी है यदि इसके संशोधिन में थोड़ा सा कष्ट उठाया जाय तो इतिहास की बहुत सामग्री प्राप्त हो सकती है मेहता नैणसी की ख्यात और महात्म्य टॉड साहब का 'टॉड राजस्थान' इधर उधर की सुनी हुई बातें और पटावलियों वंशावलियों के आधार पर लिखा हुश्रा है पर वे ग्रंथ आज कितने उपयोगी समझे जाते हैं ? कान्ति-टॉड साहब और मेहता नैणसी के ग्रन्थ में बहुत त्रुटिएँ ... रही हुई हैं ? शान्ति-त्रुटिएं होगी पर वह कितना उपयोगी है आज अच्छे अच्छे विद्वानों ने उनका संशोधिन कर उन्हीं का ही सहारा लेकर अनेक ऐतिहासिक प्रन्थों का निर्माण कर यश कमाया है तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्ष प्रमाण के साथ परोक्षPage Navigation
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