Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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जैन राजाओं का इतिहास
(५५) गौपगिरि (ग्वालियर) का राजा आम जैनराजा
बांदीकुंजर केसरी प्राचार्य बप्पभट्टसूरी जैन जैनेतर जनता में बड़े ही मशहूर है आप प्रत्येक विषय का साहित्य के धुरंधर विद्वान थे । आपने काव्य और कवित्व शक्ति से राजा श्रमको जैन बनाया । नृपति श्रामने ग्वालयेर में भगवान आदीश्वर का १०१ हाथ उच्च मन्दिर बनवा के उसमें १८ भार सुवर्ण की मूर्ति स्थापन की जिसकी प्रतिष्टा श्राचार्य बप्पभट्ट सूरि के कर कमलों से करवाई । आचार्य श्री की अध्यक्षत्व में इस भूपति ने शत्रुंजय गिरनारादि तीथों की यात्रा निमित एक बड़ा भारी संघ निकाला था राजा श्रमकी सन्तान ओसवाल जाति में राजकोठारी के नाम से प्रसिद्ध हैं तीर्थेश श्री शत्रुजय का अन्तिमोद्धारक श्रीमान् कर्माशाह जैसे धर्मवीर राजा श्रम के घराने में पैदा हुए थे T " प्रभाविक चारित्र”
(५६) मथुरानारी का राजा बाकपति - जैनराजा
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नृपति वाक्पति श्राचार्य बप्पभट्टसूरि का परम भक्त था जिसने श्री पार्श्वनाथ चैत्य में आचार्यश्री के हाथों से जैन दीक्षा -लेकर १८ दिन का अनसन व्रत पूर्वक स्वर्गवास किया था ।
" प्रभाविक चरित्र"
(५७) गौड- देश लखणावती का राजा धर्मशील - जैन राजा
आचार्य बप्पभट्ट सूरि कनौज से विहार कर गौडदेश की राजधानी लखावती पधारे वहाँ का राजा धर्मशील ने श्राचार्य