Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
६४ और विशेष में अहिंसा धर्म का उपदेश दिया और राजा उसे स्वीकार कर जैनधर्मोपासक बनगया ।
“तपागच्छ पद्यावति" (८८) सुवर्णगिरी का राजा समरसिंह-जैनराजा यह नुपति आचार्य अजितदेव सूरि का परमभक्त था।
"त. प." : (८६) मंडोबर का राव मोहेणसिंह-जैनराजा
श्राचार्य शिवशर्मा सूरि ने उपदेश देकर राठौड राव माहेणसिंह को जैनधर्म की शिक्षा दिक्षा देकर जैन बनाये मोहेणसिंह की सन्तान मुनोंयतों के नाम से ओसवाल ज्ञाति में प्रसिद्ध है ।
_ “मेहताजी का जीवन" . (60) कलिंग का राजा प्रतापरुद्र-जैनराजा'
उडीसा की गुफाओं के शिलालेख से पाया जाता है कि विक्रम की शोलहवीं शताब्दी में कलिंग में राजा प्रतापरुद्र नामक राजा था और यह नपति जैनधर्म का परमोपासक थे।
.. (६१) दहलीपति बादशाह अकबर. जगत् गुरु भट्टारक जैनाचार्य विजय हीर सूरीश्वर ने बादशाह अकबर को प्रतिबोध कर एक वर्ष में छः मास जीवदय के पट्टे परवाने करवाये तथा जैनतीर्थों की रक्षा के लिये भी अनेक फरमान प्राप्त किये इसका विस्तृत वर्णन सूरीश्वर और सम्राट नामक ग्रन्थ में है।
(शेष आगे के भागों में)