Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 55
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह ५४ देव का अच्छा स्वागत किया, राजा बोद्धमत अवलम्बी होने पर भी प्राचार्यश्री को आग्रह पूर्वक विनति कर आपने राजसभा में हमेंशा व्याख्यान श्रवण किया करते थे, बोधभिक्षु वर्द्धन कुंजर के साथ एक दफे आचार्य बप्पभट्ट सूरि का शास्त्रार्थ हुआ जिसमें विजय आचार्य बप्पभट्ट सूरि की हुई इतना ही नहीं पर राजा धर्मशील जैन धर्म को स्वीकार किया और वर्द्धनकुञ्जर भी जैन धर्म को अपने हृदय में उच्च स्थान दिया। "प्रभाविक चारित्र" (५८) पाटण का राजा बनराज चावड़ा-जैनराजा यों तो चावड़ा बंशी राजा जैन धर्म के परम उपासक ही थे, इनकी राजधानी पंचासरामें थी पर वि० सं० ८०२ में बनराज ने अनहलवाड़ पादृणनामक नया नगर बसा कर अपनी राजधानी कायम की। इनके गुरु आचार्य शीलगुणसूरि थे आचार्य श्री की इसपर पूर्ण कृपा थी जिससे आपने सब तरह की योग्यता प्राप्त की राजा बनराज ने पाट्टण में पंचासरापार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया था और जैनधर्म का प्रचार कार्य में बड़ा ही सहयोग दिया था स्वाधर्मी भाइयों की सहायता की और इनका अच्छा लक्ष था इत्यादि “पाटण का इतिहास" (५६) मानखेट नगर का राजा अमोघवर्ष-जैनराजा महाराष्ट्रीय प्रान्त में यों तो विक्रम पूर्व आठवी शताब्दी में जैनाचार्य लोहित सूरि के उद्योग से जैन धर्म का प्रचूरता से

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