Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
View full book text
________________
६१
जैन राजाओं का इतिहास (७६) करणाटक का राजा जयकेशी-जैनराजा ___ यह नृपति आचार्य कुमन्दचन्द्र का परम उपासक था।
"प्रा. च." (८०) नारदपुरी का राव धा-जैनराजा
आचार्य श्री यशोदेव सूरि एक समय नारदपुरी ( नाडिल ) नगरी में पदार्पण किया वहाँ का शासनकर्ता राव लाखण थो जिसके लघु वान्धव राव दूधाजी थे जिनको उपदेश देकर जैन बनाये जिनकी सन्तान ओसवाल ज्ञाति में वीरभंडारियों के नाम से मशहूर है।
.. "चौहानों का इतिहास" (८१) सिद्धप्रान्त का डमरेल नगर का राजा-जैनराजा
- आचार्य कक्कसूरि एक बस्त सिन्धु प्रान्त में पधारे थे वहाँ के श्राद्दवर्ग ने आपका अच्छा स्वागत किया, आपका धर्मोपदेश हमेशा होता था वहाँ के नरेश ने आचार्य श्री की विद्वता की प्रशंशा सुन के अपने वहाँ बुलाकर धर्म देशना सुनी जिसका प्रभाव राजा पर इतना हुआ कि उसने मांस मदिरादि कुव्यसनों का त्याग कर जैनधर्म को स्वीकार कर अहिंसा धर्म का खूब प्रचार किया।
___"उपकेशगच्छ चरित्र" (८२) मारोटकोट का राजा सिंहवली-जैनराजा _ यह नृपति प्राचार्य कक्कसूरि का परमोपासक और जैन धर्म का प्रचारक थे।
"उपकेश गच्छ चा."