Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 45
________________ 'प्राचीन जैन इतिहास संग्रह ४४ था उसने सर्व दर्शनकारों का अपना २ आचार व्यवहार छाड़ाने का श्राज्ञा दी तथा जैनसाधु ब्राह्मणों को प्रणाम करे ऐसी आज्ञा निकाली। इससे जैन श्रमण संघ में बड़ी भारी चिन्ता पैदा हुई। उस समय दो साधुओं को भरूच्छ नगर भेजकर श्रीमान् महेन्द्रोपाध्याय को बुलाया और सर्व ब्राह्मणों को राज सभा में एकत्र किया कि आपको जैन साधु नमस्कार करेंगे । उपाध्यायजी ने एक कनेर की कंभा लेकर ब्राह्मणों पर फेरदी ‘कि वे सब निचेस्ट हो गये। यह देख राजा और प्रजा उपाध्यायजी के चरणों में शिर झुकाया। और प्रार्थना की कि आप दयालु हो इन ब्राह्मणों को सावचेत करें । उपाध्याय जी ने शर्त की कि यदि यह ब्राह्मण जैन दीक्षा ले तो सचेतन हो सकते हैं। राजा प्रजा ने इस बात को स्वीकार करी तब उपाध्यायजी ने पुनः कनेर की कंभा फेरी कि वे सब सावचेत हो आये। फिर वे सब ब्राह्मण भरूच्छ जाकर आचार्य खपटसूरि के पास जैन दीक्षा ग्रहन करी। राजा भी जैन धर्मोपासक हुआ। "प्रभाविक चरित्र (४०) वल्लभिनगरी का राजा शल्यादित्य जैन राजा आचार्य सिद्धसूरि पृथ्वी मंडल को पायन करते हुए वल्लभिनगरी में पधारे । वहाँ का राजा शल्यादित्य ने आपका बड़ा ही स्वागत किया। आचार्यश्री ने राजा व प्रजा को धर्मोपदेश सुनाया। राजा ने जैन धर्म को स्वीकार कर प्राचार्य देव का व जिनशासन का इतना भक्त वन गैया कि प्रतिवर्ष सास्वतीअठा

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