Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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• प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
४२.
हमेशा धर्म चर्चा सुना करता था। राजा प्रजा की आग्रह पूर्वक बिनती को मान दे दिवाकर जी वहां ही ठहरे ।
एक समय कामरू देश का राजा विजयवर्मा ने बड़ी सैना के साथ कुर्मारपुर पर आक्रमण किया, देवपाल के पास इतनी सैना नहीं थी कि विजयवर्मा का मुकावला कर सके । उसने दिवाकरजी से सब हाल निवेदन किया, दिवाकरजी अनेक लब्धि और विद्याओं से परिपूर्ण थे जिसका लाभ देवपाल राजा ने लिया कि उसने विजयवर्मा के साथ युद्ध कर उसे भगा दिया इस चमत्कार को देख राजादेवपालादि हजारों ने जैन धर्म स्वीकार कर उसका प्रचार किया । आचार्यश्री को दिवाकर की पट्टी इसी नृपति ने दी इनका समय विक्रम के समय का लीन माना जाता है ।
" प्रभाविक चारित्र"
(३५) पाटलिपुर का राजा मुरूड-जैन राजा
आचार्य पादलिप्रसूरि एक समय भूभ्रमन करते पाटलीपुर पधारे। वहां का मुरूण्ड राजा ने आचार्यश्री का अच्छा आदर सत्कार किया, श्राचार्यश्री ने भी राजादि को धर्म देशना देकर उन पर जैनधर्म का प्रभाव डाला । एक समय राजा के शिर की असाध्य बेदना हुई, राजमंत्रियों द्वारा सूरिजी को ज्ञात हुआ तब एक तर्जनी अंगुली से राजा की वेदना मिटा दी । राजा आचार्य देव के स्थान पर जाकर भक्ति पूर्वक वन्दन करी बाद कई शंकाओं का निराधार कर राजा जैन धर्म को स्वीकार किया और राजा ने सूरिजी के अध्यक्षत्व में तीर्थ यात्रा निमित्त शत्रु-