Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 47
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह ४६ (४२) कोलापुर पट्टन का राजा कदर्पि- जैनराजा श्राचार्यश्री कक्कसूरिजी एक समये कोलापुर पट्टन पधारे। आप स्वपर मत के शास्त्रों में प्रवीण और अनेक अलौकिक विद्याओं से भूषित थे । वहाँ पर एक योगी आया था और वह हर एक के साथ बाद विवाद कर विजय पाता था । इस समय आचार्य श्री के साथ भी वह विद्या वाद करने की उत्कण्ठा रखता था और इन दोनों का वाद राज सभा में हुआ, आखिर में विजय आचार्य देव को मिली। इस हालत में राजा और बहुत नागरिक जैन धर्म स्वीकार कर आचार्यश्री के परमोपासक ये 1 - बन " उपकेश - पट्टावली” (४३) आनंदपुर का ध्रुवसेन राजा- जैन राजा राजा धूवसेन श्राचार्यश्री कालकसूरि का परमोपासक था। इसी राजा के कारण कल्प सूत्र चतुर्विध श्रीसंघ की सभा में वांचना शुरू हुआ जो कि पहले केवल साधु ही वाचते थे । " कल्पसूत्र " (४४) जाबलीपुर का राजा धवल-जैन राजा आचार्य नन्नप्रभसूरि ने महाराजा धवल को उपदेश देकर - जैन बनाया जिसने श्री शत्रुंजय का बड़ा भारी संघ निकाल भगवान महावीर का मन्दिर बनवा के सवा मण सोना का इंडा चढ़ाया था एवं जैन धर्म की खूब प्रभावना की । "कोरंटा गच्छीय श्री पूज्य की बही "

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