Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह संवत्सरी करना स्वीकार कर लिया । कालकाचार्य का संघमें इतना प्रभाव था कि उस नूतन प्रवृत्ति को प्रायः सब संघ मान रखी और आज पर्यन्त भी चतुर्थी की संवत्सरी होती आई है।
_ 'प्रभाविक चारित्र" (३३) उज्जैन नगरी का राजा विक्रमादित्य-जैनराजा
परम दयालु न्याय निपुण महाराजा विक्रमादित्य उज्जैननगरी में राज कर रहे थे। यह भी कहा जाता है कि राजा विक्रम ने सब जनता का ऋण ( कज) चुका के अपने नाम का संवत् चलाया वह आज पर्यन्त भी चल रहा है इसो कारण राजा विक्रम धर्मावतार के नाम से प्रसिद्ध हैं। __एक समय आचार्य सिद्धसेन दिवाकर भूभ्रमन करते हुए उज्जैन में पधारे। आप न्याय छंद एवं व्याकरण के धुरन्धर विद्वान् थे। कवित्य शक्ति तो आपकी इतनी चमत्कारोत्पादक थी कि जिसको श्रवण कर वृहस्पति भी चकरा जाता था। महा. राजा विक्रम की राजसभा में आप अपनी विद्वता से राजा और पंडितों के मन को रंजन कर अच्छा सम्मान प्राप्त कर लिया था, विक्रम की राज्य सभा में आप एक प्रखर विद्वान् पण्डित समझे जाते थे।
एक समय राजाविक्रम, दिवाकरजी को साथ लेकर कुंडगेश्वर महादेव के मन्दिर में गये । राजा ने शिवलिंग को नमस्कार किया पर दिवाकरजी जैसे के वैसे ही खड़े रहे अर्थात् उन्होंने शिवलिंग को नमस्कार नहीं किया। राजा ने पुच्छा क्या आप शिवलिंग को नमस्कार नहीं करते हैं, दिवाकरजी ने कहा मेरे नमस्कार