Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 40
________________ जैन राजाओंका इतिहास कालकाचार्य ने शासन व धर्म की रक्षा की । इनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दि है। ___ "निशीथचूर्णी वं प्रभाविक चारित्र" (३१) भरुच्छ नगर का राजा बलमित्र भानु मित्र जैन राजा भरुच्छ नगर का राजवंश प्राचीन काल से ही जैनधर्म के उपासक और प्रचारक थे पर बल मित्र भानू मित्र का नाम विशेष मशहूर है। इन दोनों नृपतियों ने थोड़े वक्त उज्जैन में भी राज्य किया था उनके धर्म गुरु कालकाचार्य थे। । “निशोथ चूर्णो व प्र. चारित्र" (३२) प्रतिष्ठान नगर का राजा सतबाहन जैन राजा राजा सतबाहन के आग्रह से कालकाचार्य ने पंचमी की संवत्सरी चतुर्थी को करी थी बात यह थी कि जब कालकाचार्य प्रतिष्टान नगर में पधार के चातुर्मास किया और राजा सतवाहनको उपदेश दे कर जैन बनाया और उसी वर्ष में संवत्सरीक व्रत और प्रतिक्रमण करने के लिए सूरिजो ने राजाको कहा उत्तर में राना ने कहा कि पंचमी को तो यहाँ सार्वजनिक महोत्सव है और उसमें मुझे सामील रहना बहुत जरूरी है यदि आप संवत्सरी के लिये एक दिन आगे • या पीछे अर्थात् चतुर्थी व षष्टी का दिन रखें तो मैं यह धर्म कृत्य 'सुविधा से कर सकता हूँ कालकाचार्य ने राजा को धर्म में स्थिर रखने को लक्ष में रख उनके आग्रह को मान देकर चतुर्थी को

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