Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 26
________________ जैन राजाओं का इतिहास (४६ ) सुघोष नगर के- अर्जुन राजा भी जैन थे, श्राप के पुत्र भद्रनन्दी ने बड़े वैराग्य के साथ भगवान महावीर के पास जैन दीक्षा ग्रहण करी। (४७) चम्पा नगरी के--राजा दत्त और रत्तवन्ती राणी जैन धर्म को प्रेम पूर्वक पालन करते थे, आपके पुत्र महिचन्द्र ने राजऋद्धि और ५०० अंतेवर का त्याग कर जैन दीक्षा ली थी। ' (४८) साकेत नामा नगर के-राजा मित्रनन्दी और श्री कान्ता राणी जैन धर्मोपासक थे, आपके पुत्र वरदत्त कुमार ने भगवान महावीर के चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा को ग्रहण कर स्वपर कल्याण किया । (नं. ३९ से ४९ तक के दश नृपतियों का अधिकार विपाक सूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध के १० अध्ययनों में विस्तार पूर्वक लिखा मिलता है) (४९) अमलकम्पा नगरी के राजा सेत जैनधर्मी थे, जिन्होंने भगवान महावीर प्रभू के आगमण समय बड़ा ही जोरदार स्वागत किया था। ___ "रायपसेणी सूत्र" ... (५०) श्वेताम्बिका नगरी के राजा प्रदेशी वो सूरिकान्त कुँवर भी जैनधर्म के परमोपासक थे । राजा प्रदेशी कठिन व्रत तपश्चर्या कर के सूरियाभ नामका देव हुआ एक भवकर मोक्ष जायगा। "राय पसेणी सूत्र" (५१) हस्तिनापुर के राजा शिव पहिले तापसी दीक्षा ली थी और इसका मत था कि संसार भर में सात द्वीप और सात समुद्र ही हैं, परन्तु जब भगवान महावीर का समागम होने से

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