Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 19
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह १८ ही धर्म है पर जिन महानुभावों ने इतिहास पढ़ने का थोड़ा बहुत कष्ट उठाया है वह बखुबी जान सकते हैं कि जैन धर्म एक राष्ट्रीय धर्म है । भारत को आर्यवर्त और अहिंसा प्रधान देश कहा जाता है इस से ही सिद्ध होता है कि भारत में जैन धर्म की ही प्रधानता थी, वेद काल के पूर्व जैन धर्म का अस्तित्व तो खुद वेद और पुराण ही बतला रहे हैं । * निम्न लिखित प्रमाणों को पढ़ियेॐ नमोऽर्हतो ऋषभो || अर्थ - अर्हन्त नाम वाले (व) पूज्य ऋषभदेव को नमस्कार हो । ( यजुर्वेद ) ॐ रक्ष रक्ष अरिष्ट नेमि स्वाहा || अर्थ - हे अरिष्टनेमि भगवान् हमारी रक्षा करो । ( यजुर्वेद अध्य० २६ ) ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्टितानां चतुर्विंशति तीर्थकराणां । ऋषभादि वर्द्धमानान्तनां, सिद्धानां शरणं प्रपद्ये ॥ अर्थ-तान लोक में प्रतिष्ठित श्री ऋषभदेव से आदि लेकर श्री बर्द्धमान स्वामी तक चौवास तीर्थंकरो ( तीर्थ को स्थापन करने वाले ) हैं उन सिद्धां की शरण प्राप्त होता है । ( ऋग्वेद ) ॐ पवित्रं नग्नमुपवि (ई ) प्रसान हे येषां नग्ना ( नग्नये ) जातिर्येषां वीरा ॥ अर्थ- - हम लोग पवित्र, "पाप से बचाने वाले'- नग्न देवताओं को प्रसन्न करते हैं जो नग्न रहते हैं और बलवान् हैं । ( ऋग्वेद )

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