Book Title: Prachin Jain Itihas 01 Author(s): Surajmal Jain Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 5
________________ प्रथमावृत्तिकी भूमिका । जैन समानमें अबसे शिक्षा प्रचारका प्रश्न उठा है. तभीसे जैन धर्म संबंधी पाठ्य पुस्तकोंका भी प्रश्न चालू है। जैन धर्म संबंधी पाठ्य पुस्तकों के लिये कई सभाओंने कई बार प्रस्ताव किये, कमेटिया बनाई पर अंतमें कुछ भी फल नहीं हुमा । इन्हीं पाय पुस्तकोंमें जैन इतिहास संबंधी पुस्तक भी गर्भित थी। बंबई परीक्षालयके पठनक्रममें जैन इतिहास रखा गया था और मब भी है । परीक्षालय द्वारा प्रकाशित पठनक्रम पत्रमें लिखा है कि इन पुस्तकोंके बनवानेका प्रयत्न किया जा रहा है । इस क्रमको प्रकाशित हुए कई वर्ष हो गये पर वह प्रयत्न अबतक सफल नहीं हुआ। जैन समाजमे ऐसी इतिहास संबंधो पुस्तककी, जिसमें हमारा प्राचीन इतिहास संग्रह हो, और वह संग्रह प्रथमानुयोगके ग्रंथों द्वारा किया गया हो, बड़ी आवश्यकता थी। उस आवश्यकताको ध्यानमें रख मैंने प्रयत्न किया और हर्ष है कि आज मैं अपने उस प्रयत्नको पाठकोंक सन्मुख रखनेमें समर्थ हुमा हूँ। मैं न इतिहासज्ञ हू और न लेखक, पर जैनधर्म और जेनसमाजका एक तुच्छ सेवक अवश्य हूं उसी सेवड़के नातेके मोशमें भाकर मैंने यह कार्य किया है। माशा है कि समाज इसे अपनायगी। जहां तक हो सका है इसमें मैंने उन सब बातोंके संग्रह करनेका प्रयत्न किया है जिन्हें इतिहासज्ञ चाहते हैं । साथमें विद्यार्थियों के भी उपयोगी बनानेका ध्यान रखा है।Page Navigation
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