Book Title: Patrasadupadesh Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ता. २७-११-१६ ८८ www.kobatirth.org ( ५ ) शं० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७३. का० व० अमात मु० विजापुर ली. बुद्धिसागर श्री प्रांतिज मध्ये वैराग्यआदि गुणालंकृत पन्यास अजित सागरजी गणी वगेरे योग्य अनुवंदना सुखशाता, तथा प्रांतिजना जैन श्वे. संघसमस्त योग्य धर्मलाभ वि० पन्यास अजितसागरजी गणोनो पत्र तथा प्रांतिजना संघ शेठीआनो पत्र आव्यो वांची समाचार जाण्या छे. अमारुं शरीर जरा नरम छे अने तेथी करी रात्रि घणा साधुओनी साथे रहेवानुं थाय तेम स्थान पण विशाळ न होय ता तेथी ऊंघ आबी शके नहीं अने शरीर बगडवानुं थाय. आ बात महेन्द्रसागरजीने मुखे कही छे पण प्रत्युत्तर नथी. व्यवस्था शी करो छे ते पण जणान्युं नथी. एकज उपाश्रयमां साधुनुं रहेवानुं थोय अने उजमा सबंधी पण कार्य थाय ते बात मने रुचतो नथी. मुंबाई, सादरा अने पारीस्थी श्रावकोना पत्र आवेल छे, पेपर वाळाना पत्र पण आवेला छे अने ते तमामनो सार ए छे के साधुओ उजपणा माळो जमणवार विगेरे बाह्य मनाती शासन ऊन्नतिमां पैसानुं पाणी - धूमाडो करावे छे. अन्य प्रजाओ स्वउन्नतिमां प्रवृत्तिमय थई रहो छे. जमानो केषो छे. ने जाणवा छतां सांभळबाछतां आवुं वर्तन थाय छे. त्यारे टीका करनारा करतां दोषपात्र साधुओं गणवा जोइए" आ उपरथी जवाब आपशो के तमारा त्यां पुस्तक प्रसिध्धीमां अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडळ, जैनबोर्डिग, ज्ञानप्रसारक विषयमां तेम स्थानिक पाठशाळा के मंडळमां विगेरे जैन शासननी दरेक उन्नतिना मार्गों पैकी कया मार्गोमां द्रव्यनो शो व्यय करवा निश्चय कर्यो छे. अहीं श्रेष्टी मगनलाले उजमणु कर्यु. अमारी इच्छा न होती तोपण अन्य श्रावकोनी आवी प्रवृत्तिमां जमानाने जरुर छे ते मार्गों पैकी बोर्डिंगमां ३००० रु० अने जैन स्कोलरशीप तरीके १००० ६० नी रकम सखावत तरीके जाहेर करी छे. तेषु तमारा त्यां कर्यु छे ? ते लखशो. साधुओ जो For Private And Personal Use Only

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