Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

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Page 14
________________ वर्तशे तो ते दंडनो भागी थशे. आ प्रमाणे नगर वा गामनां सर्व चैत्योनी यात्रा ते ' चेइअपरिवा. डोजत्ता' (चैत्य परिपाटियात्रा) कहेवाती. अने से प्रवृति विशेष प्रचलित थतां उतावलने लीधे । यात्रा' शब्द निकलो जइने 'चैत्यपरिपाटि' शब्द ज प्राथमिक मूल अर्थने जणावधामा रूढ थइ गयो. वखत जतां चैत्यपरिपाटी-चैत्यपरिवाडी-चैत्य प्रवाडी- वैत्रप्रवाडी इ । त्यादि अनेक प्रकारना 'चेइअपरिवाडीजत्ता' ना स्थाने संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश शब्दो रूढ थया जे आज पर्यन्त ते अर्थने जणाधी रह्या छे. उपरना विवेचनधी थे वात स्पष्ट थइ के 'चैत्यपरि. वाडी' ओ नाम अक प्रकारनी यात्रानुं छे, अने उपचारथी तेवी यात्रानुं वर्णन के विवेचन करनार प्रबन्ध वा स्तवनो पण 'चैत्यपरिवाडी' ना नामथी ओलखावा लाग्यां के जे बनाव साहित्यमार्गमां एक स्वाभाविक घटना छे तीर्थमाला अने चैत्यपरिवाडियोनो वास्तविक भेद. ___ यद्यपि तीर्थमाला वा तीर्थमालास्तवनो अने चैत्यपरिवाडी वा चैत्यपरिवाडी स्तवनोमां सामान्य रीते भेद नथी गणवामां आवतो तथापि तेनां नाम अने लक्षणो तपासतां ते बन्ने प्रकारनी कृतिनो वास्तविक भेद खुल्लो जगाइ आवे छे. तीर्थमाला सवनोनुं लक्षण ए होय छे के पोते भेटेलां वा सांभळेलां के शाखोमां वर्णवेलां नामी नामी तीर्थीनां चैत्य वा प्रतिमाओनुं वर्णन, तेनो साचो वा कल्पित इति. हास तेनो महिमा अने ते संबंधी बीजी बाबतोनुं वर्णन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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