Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

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Page 125
________________ परवा परबइ लइसियए, सीतल वायइ वाय ॥ २४ ॥ मरुदेवा गइवर चडिय, अचिरानंदण संति । छीपकवसहिय वंदियइ ए, अदबुद सोवन कति ॥ २५॥ अनुपम सरवर पेखियइ ए, सरगारोहिणि चंग। वाधिणि निरखी बारणइ ए, रोमंचिय मह अंगि ॥ २६॥ वस्तु आदि जिणवर आदि जिणवर नमिय बहु भत्ति, देवासुर संथुणिय कुमयमोहमहिमा विहंडण; खरतरवसहिय पढजिण, नेमिनाह गिरनार मंडण । रायणतलि हिव पूजियइ, सामिआदिल-पाइ, नाग मोर बे ध्याइयइ, जे हुआ सुरकाइ ॥ २७ ॥ इणिपरि यात्रा विमलगिरे, कोधी मन उल्हासि । कवडजक्ष-सुपसाउलइ ए, टला विधन दुह गसि ॥ ८॥ पाटण पहया वरनयर, जिह विससेण मल्हार । अवर बिंब बहु वंदियइ ए, तिहां न लाभइ पार ॥२१॥ सिरि संभवपहु वाविपुरे, लोद्राडइ सिरिसंति; फीदोवनयर सिरिवीरजिण, जसु पसाइ सुह संति ॥३०॥ तेवीस वच्छर विगयमच्छर ठामि ठामि जिणेसरा। निय भाव सत्तिहि विविह भत्तिइ भविय कमल दिणेसरा । बहु संघ साथइ देवराजइ वच्छराजि नमंसिया। ते देव सुहभर जावडू थिर श्रीसाधुचंद्रि प्रसंसिया ॥३॥ ॥ इति तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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