Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ १०५ जिनजी धरमधुरंधर व्रतधारी, परगटमल पारवाड हो । जिनजी तेह तणे उद्यमे करी, कीधी में चत्यमवाड हो । जि० ॥ ७ ॥ जिनजी तव तीरथमाल घणी, कीधी में अति चंग हो । जिनजी साह रामजीना आग्रहे, मन धरि अति उछरंग हो । जि० ॥ ८ ॥ जिनजी तवन तीरथमालातणुं, भणे सुणे वली जेह हो । जिनजी यात्रातणुं फल ते लहे, वाधे घरमसनेह हो ॥ जि०॥९॥ जिनजी श्रीविजयदेवसूरीसना, पाट प्रभाकर सुर हो । जिनजो श्री विजयप्रभसूरि जग जयो । दिन दिन चढते नूर हो ॥ जिनजी धन० ॥ १० ॥ जिनजी श्रीविजयदेवसूरींदना, साधुविजय बुध सीस हो जिनजी सेवक हरषविजयतणी, पूरो मनह जगोस हो ॥ ११ ॥ ॥ कलश ॥ इम तीरथमाला गुणविसाला, प्रवर पाटण पुर तणी । में भगति आणी लाभ जाणी, थुणी यात्राफल तणी ॥ तपगच्छनायक सौख्यदायक, विजयदेवसूरीसरो । साधुविजय पंडित चरणसेवक, हर्ष विजय मंगल करो ॥ १ ॥ 1368638668688 इति पाटण चैत्यप्रवाडी संपूर्ण. 99999999 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134