Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library
View full book text
________________
नवपल्लव नमुं उछांही, जिणेसर ताहरा गुण गाउं ॥
जिम मनवंछित सुख पाउं । जि० १॥ साठ उपर सत तिम चार । बीजे देहरे श्रीशांति जुहार । विष ओगणसाठ उदार ॥ जि० २॥ कलारवाडे देहरां दोय, शांति बिंब एकावन होय । बावन जिनालय जोय ॥ जि० ३॥ पीतलमय बिंब सोहावे, विमलनाथ भविक मन भावे । चउ उत्तर चतुरा जिनगुण गावे ॥ जि० ४॥ तिण एकसो चोपन जिनराया, ऋषभदेवना प्रणमुं पाया। दणायवाडे शिवसुखदाया | जि० ॥५॥ धंधोलीए संभव जिन साचो, वंदि त्रेपन जिन मनमांहि माचो। तूंही जिन जगमांहि साचो ॥६॥ गोलवाडे श्रीमहावीर, सोवन वान जास शरीर । सात प्रतिमा गुण गंभीर ॥ ७॥ जि० ॥ दोय शत दस प्रतिमा पास, श्रीशतफणो जिनपास । पूरे मन केरी आश ॥ जि० ८॥ खारीवावे श्रीजिनवर्धमान, तेर प्रतिमा गुणह निधान । जिननामे कोड कल्याण ॥ जि० ॥९॥ तिहांथी श्रीपंचासरो पास, वंद्या मन धरी अधिक उल्लास ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134