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वसतिनो घटाडो, ३-श्रावकोर्नु विशेषे करीने परदेशोमां रहे,.
उपर जणावेलां सं. १६४८, सं. १७२९ अने सं. १९६७ नी सालमा विद्यमान चैत्योनी संख्यानां त्रणे कोष्टको उपरथी पाटणनी चडती पडतीनां अनुमानो थइ शकशे.
यद्यपि आजे पण पाटण एक भव्य शहेर गणाय छे, हजारोनी संख्यामां अस्तित्व धरावता प्राचीन ग्रन्थोना संग्रहो-भंडारोना दर्शन निमित्ते अनेक भारतीय अने यूरोपीय विद्वानोनुं ध्यान पाटण पोतानी तरफ खेची रयुं छे, श्रीमंत अने धनिष्ठ जैनधर्मी मनुष्योनी लगभग ५-६ हजार. जेवडी म्होटी संख्याथी पाटण हजी पण पोतार्नु “जैनधर्मनी राजधानी" ए प्राचीन मानतु नाम केटलेक अंशे निभावी रह्यं छे, एटलुं छतां पण पाटणनी ते प्राचीन श्रेष्ठता, प्राचीन भव्यता, प्राचीन समृद्धि आजना पाटणमा रही नथी,ते श्रेष्ठताओ माजे तेनी प्राचीन स्मृतिमांज नजरे पडे छे; कृतिमा नहि.
उपरना संक्षिप्त विवेचनयी प्रस्तुत परिवाडीनी भैतिहासिक उपयोगिता वांचकगणना ध्यानमां आव्या वगर रहेशे नहि.
आ प्रस्तुत परिवाडीनो शब्दानुवाद न करतां तेनो सारांशमात्र तारवीने शरुआतमां आपी वीणे छे के जे उपरथी परिवासीनी सर्व ज्ञातव्य वातो जाणी शकाशे, अने आशा छे के एक बार ए 'सार' वांच्या पडी परिवाडी वांचनारने तेमां न समजाय तेवी कंड पण बाबत जणाशे नहि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com