Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library
View full book text
________________
१००
महिमा जगमें गाजतो ॥ जयो० जयो० २ ॥ लींबडीई श्रीशांति जिणंद, त्रणसे सात तिहां श्रीजिनचंद । दिठइ अति आणंद तो ॥ जयो० जयो० ३॥ करणे शीतलजिन जयकारी, प्रतिमा सत नवसो तिहां सारी। जनमन मोहनगारी तो ॥ जयो० जयो० ४ ॥ बिंब सतरम् शांति सोहावे, बीजे देहरे मुज मन भावे । दरिसणथी दुख जाय तो ॥ जयो जयो०५॥ देहरासर तिहां देहरा सरखं, पांत्रीस प्रतिमा तिहां कण निरखं । देखी मुझ मन हरख्युं तो ॥ जयो० जयो० ६॥ संघवीपोले पास जगदिस, प्रतिमा एकसो ओगणत्रीस'। पूरइ मनह जगीस तो ॥ जयो० जयो० ॥७॥ पीतलमे दोय बिंब विसाल, प्रतिमा तेहनी अतिसुकमाल । दीसे झाकझमाल तो ॥ जयो० जयो० ८॥
॥ढाल ॥६॥ भवि तुमे वंदो रे शंखेश्वर जिनराया ॥ ए देशी ॥ खेतलवसही दोय प्रासादे, पास जिणेसर भेट्या । सामला पासनी सुंदर मूरति, देखत सब दुःख मेटया रे॥१॥
भवियां भावे जिनवर वंदो । १. एकत्रीस' एवो पण पाठ छे.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134