Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

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Page 100
________________ जिन ध्यातां रे मारगि शंकट सवि टलइ रे । दुखडां नासइ दूरि । पामइ रे २ मुखिपद सवि सुहाकरू रे ॥ ॥ ९८ ॥ इम० ॥ गछि पूनिम रे शाखा चंद्र वषाणीइ रे। श्री भुवन प्रभ मूराि गुण रयणे रे २ जलनिधि जिम हुइ गाजतु रे । तिम सोहइ रे कमल प्रभसूरी सरू रे। तमु पाटि पुण्यप्रभ मूरि । दीपइ रे २ तेजई दिनकरराजतु रे ॥ ९९ ॥ इम०॥ तमु पाटई रे श्री विद्याप्रभसूरी सरूरे । जेहवउ पूनिम चंद । नंदन रे २ गुरी माता तेह तणउ रे । जिम गगनई रे तारागणछेह नही रे । गंगा विलू न पार । गुण पूरई रे २ देहभरिओ श्रीगुरुतणउ रे ॥ २०० इम० ॥ ज्ञानइं रै भरीउ जिम हुइ जलनिधी रे। षम दम मद्दवसार । कीरति रे २ भूमंडलमांहि विरतरी रे। तमु शीस ज रे ललित प्रभसूरि इम भणइ रे धन धन चैत्य प्रवाडि। पाटणि रे २ मनोहर चैत्य ज चिति धरी रे ॥१॥ इम०॥ संवत रे सोल वली अठतालडइ रे । आसो मासि विचारी | बहुल पखि रे २ चउथि तिथि वली जाणीइ रे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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