Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ १३ जैन संघ राजा उपर भारे गुस्से थयो,एटलं ज नहिं,पण सेंकडो जैन कुटुंबो विमलनु अनुसरण करी पाटण छोडो चंद्रावतीमां जइने वस्यां.जो उपरनी हकीकत साचा इतिहासमांखपती होय तो कहेवू जोइये के पहेला भीमदेवना वखतमां पाटणनी जैन वसतिमां कंइक भंगाण पड्यु हशे ज, परंतु आ बनाव साचो होय तो पण तेनी विशेष स्थायी असर थइ जणाती नथी, कारण के ते पछीना चौलुक्य राजा कर्णदेव, सिद्धराज, कुमारपाल विगेरेना राज्यकालमां पण लगभग तमाम राज्य. कारभार जैन मंत्रिओना हाथमां ज हतो, एलुं ज नहिं पण सिद्धराज के जे शैवधर्मी हतो छतां जैनधर्म अने जैनध. मीओने घणु ज मान देनारो अने जैन विद्वानोने पूजनारो हतो. ए उपरथी समजाय छे के पाटणमां जैनधर्मनी.प्रवलता घणा लांबा काल सुधी टकी रही हती. कहेवाय छे के पक समये प्रसिद्ध आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिनु पाटणमा आगमन थयु त्यारे १८०० अढारसो कोरिध्वज शेठिआओ राजशेखरसूरि वि. सं. १४०५मां रवेला प्रबन्धकोषमांवस्तुपालप्रबन्धमां-'प्राग्वाटवंशे श्रीविमलो दण्डनायकोऽभवत् । स चिरमर्बुदाधिपत्यमभुनक् गूर्जरेश्वरप्रसत्तेः' अर्थात् 'गूर्जरेश्वर (भीमदेव) नी प्रसन्नताथी विमले लांबा समय सूधी आबू उपर आधिपत्य भोगव्युं हतुं.' एम जणावे छे. ___ आ उल्लेख जोतां विमलने भीमदेव साथे वैमनस्य थवाना वृतान्त माटे सन्देह राखवो पो छे. -ला. भ. गांधी ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134