Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ १२८/पार्श्वपुराण चंद्रार्चिचय छबि चारु चंचल, चमरवृंद सुहावने । ढोलैं निरंतर जच्छनायक, कहत क्यों उपमा बनै ।। यह नीलगिरिके सिखर मानौ, मेघझर लागी घनी । सो जयौ पासजिनेंद्र, पातकहरन जग-चूड़ामनी ||१२८।। हीरा जबाहर खचित बहुबिध, हेमआसन राजए । तहं जगत जन-मन-हरन प्रभुतन, नीलबरन विराजए || यह जटित वारिज-मध्य मानौं, नीलमनि-कलिका बनी । सो जयौ पासजिनेंद्र, पातकहरन जग-चूड़ामनी ।।१२९।। जगजीत मोह महान जोधा, जगतमैं पटहा दियौ । सो सुकलध्यान कृपानबल, जिन बिकट बैरी बस कियौ ।। ये बजत विजय निसान दुंदुभि, जीत सूचैं प्रभुतनी । सो जयौ पासजिनेंद्र, पातकहरन जग-चूड़ामनी ||१३०।। छदमस्त पदमैं प्रथम दरसन, ग्यान चारित आदरे । अब तीन तेई छत्र छलसौं, करत छाया छबि-भरे ।। अति धवलरूप अनूप उन्नत, सोमबिंब प्रभा हनी । सो जयौ पासजिनेंद्र, पातकहरन जग-चूड़ामनी ||१३१।। दुति देखि जाकी चंद सरमै, तेजसौं रवि लाजए । अब प्रभामंडल जोग जगमैं, कौन उपमा छाजए || इत्यादि अतुल विभूतिमंडित, सोहिए त्रिभुवनधनी । सो जयौ पासजिनेंद्र, पातकहरन जग-चूड़ामनी ||१३२।। यों असम महिमासिंधु साहब, सक्र पार न पावही । तजि हासभय तुम दास भूधर भगतिवस जस गावही ।। अब होउ भव भव स्वामि मेरे, मैं सदा सेवक रहौं । कर जोग यह बरदान मांगौं, मोखपद जावत लहौं ||१३३।। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175