Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai
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नौवाँ अधिकार/१६३
सोरठा । सुन श्रीपार्सपुरान, जान सुभासुभ कर्मफल । सुहित हेत उर आन, जगत जीव उद्यम करो ||३२५।।
दोहा । प्रभुचरित्र मिस किमपि यह, कीनौ प्रभु-गुनगान ।। श्रीपारस परमेसकौ, पूरन भयौ पुरान ||३२६।। पूरव चरित विलोकिकै, भूधर बुद्धिप्रमान || भाषाबंध प्रबंध यह, कियौ आगरे थान ||३२७॥
छप्पया
अमरकोष नहिं पढ्यौ, मैं न कहिं पिंगल पेख्यौ । काव्य कंठ नहिं करी, सारसुत सो नहिं सीख्यौ ।। अच्छर-संधि-समास-ग्यानवर्जित बुधि हीनी । धर्मभावना हेत, किमपि भाषा यह कीनी ।। जो अर्थ छंद अनमिल कहीं, सो बुध फेर सवारियौ । सामान्य बुद्धि कविकी निरखि, छिमाभाव उर धारियौ ।।३२८||
दोहा
जिनसासन अनुसार सब, कथन कियौ अवसान || निज कपोलकल्पित कहीं, मति समझो मतिवान ॥३२९।। छय-उपसमकी ओछसौं, कै प्रमादवस कोय ।। इहिबिध भूल्यौ पाट मैं, फेर सवांरो सोय ।।३३०।। पंच बरस कछु सरससे, लागे करतन बेर || बुधि थोरी थिरता अलप, तातें लगी अबेर ||३३१।। सुलभ काज गरुवो गनै, अलप बुद्धिकी रीत || यौं कीड़ी कन ले चलै, किधौं चली गढ़ जीत ||३३२।। विधनहरन निरभयकरन , अरुन वरन अभिराम || पास-चरन संकट-हरन, नमो नमो गुनधाम ||३३३।।
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