Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai
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नौवाँ अधिकार/१६१
और सुगंध दरब सुचि लाय | नमें सुरासुर सीस नमाय ।। अगनिकुमार इंद्र” ताम । मुकटानल प्रगटी अभिराम ||३०८।। ततखिन भस्म भई जिनकाय । परम सुगंध दसौं दिसि थाय ।। सो तन भस्म सुरासुर लई । कंठ हिये कर मस्तक ठई ||३०९।। भक्ति भरे सुर चतुरनिकाय | इहबिध महा पुन्य उपजाय || कर आनंद निरत बहुभेव । निज निज थान गये सब देव ||३१०।।
दोहा । पंच-कल्यानक-पूज्य प्रभु, सिवसिरिकंत जिनेस | सब जग सुख संपति करो, श्रीपारस परमेस ||३११।।
पद्धड़ी। पहले भव वामन कुल पवित्त । मरुभूत उपन्नो सरलचित्त ।। दूजे बनहस्ती वज्रघोष । जिन पाले बारहव्रत अदोष ||३१२।। तीजे भव द्वादस स्वर्गवास । सहस्रार नाम सब सुख-निवास || चौथे भव विद्याधरकुमार | लघु वैस लियौ चारित्रभार ||३१३॥ पंचम भव अच्युत सुरगथान । बाईस जलधि जहं थिति प्रमान | छठे भवमैं चक्री नरेस । जिन साधे सहस बतीस देस ||३१४।। सातवें जनम अहमिंद्र होय । सुख कीनैं चिर उपमा न कोय ।। आठम भव श्रीआनंदराय । तजि राजरिद्धि बन बसे जाय ||३१५।। सोलहकारन भाये मुनिंद्र | पुनि भये बारमैं स्वर्ग इंद्र || इहि बिध उत्तम नौ जनम पाय । वामा जननी उर बसे आय ||३१६।। जे गरभ जनम तप ग्यान काल । निर्वान-पूज्य कीरति विसाल || सुर नर मुनि जाकी करें सेव । सो जयौ पार्स देवाधिदेव ||३१७।।
दोहा । नाम लेत पातक भजै, सुमरत संकट जाहिं ।। तेईसम अवतार मुझ, बसो सदा हियमाहिं ।।३१८।।
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