Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

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Page 170
________________ /१६९ दूसरा अधिकार एक दिन राजा अरविन्द अपने महल की छत पर खड़े होकर बादलों को देख रहे थे । एक बादल के बहुत बड़े टुकड़े ने एक महल का दृश्य बनाया । राजा को वह महल बहुत अच्छा लगा । राजा ने सोचा मैं एक ऐसा ही महल बनाऊंगा । उसमें एक मंदिर बनाऊंगा । उसका चित्र खींचने के लिए ज्यों ही कागज पेंसिल उठाई कि एक हवा के झोके ने बादलों का महल बिखेर दिया । राजा को यह देखकर वैराग्य आ गया । उसने सोचा ऐसा ही मानव जीवन है । जो क्षणभंगुर है । बनाते बनाते बिगड़ जाता है । उसने अपने पुत्र को राज दिया और वन जाकर दीक्षा ले ली व अनेक मुनियों के साथ रह कर तपस्या करने लगे । एक बार मुनि अरविन्द मुनि संघ सहित शिखर सम्मेद की वंदना के लिए निकले । संघ में मुनि, आर्यिका , श्रावक, श्राविका सभी थे। ईयापथ से चलते हुए मुनिसंघ इसी सल्लकी बन में पहुंचा । अपने अपने स्थान में ठहर कर सभी अपने अपने काम में लग गये । मुनि ध्यान में आरुढ़ हो गये । तभी वह वज्रघोष हस्ती बड़ी भयानक आवाज करता हुआ, वृक्षों को उखाड़ता हुआ , नष्ट भ्रष्ट करता हुआ संघ की ओर दौड़ा । सारे संघ में खलबली मच गई, कोई इधर भागा, कोई उधर भागा। कोई गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ | सारा संघ तितर-बितर हो गया । हस्ती आवाज करता हुआ मुनि अरविन्द की ओर दौड़ा । ज्यों ही नजदीक आया, मनि की ओर देखने लगा । मुनि के वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिन्ह देखकर सहम गया । नीची गरदन करली । मुनिराज ने कहा गजराज पहचान लिया क्या? मैं राजा अरविन्द था और तुम मेरे मंत्री मरुभूति थे । तुमने मेरी बात नहीं मानी और कमठ से मिलने चले गये थे । उसने तुम पर शिला पटक दी । तुम मृत्यु को प्राप्त हुए। लेकिन संक्लेश परिणामों से मरण कर इस वन में पशु पर्याय पाकर हस्ती हुए हो । अब भी पाप कर रहे हो । मनुष्य से पशु बन गये अब और कहां जाने का विचार है? क्या नरक के दुखों से भय नहीं लगता ? अगर ऐसा ही पाप करते जीवन बीतेगा तो निश्चित नरक जाओगे । मुनिराज ने धर्मोपदेश दिया । अणुव्रत पालन करने का निर्देश दिया । गजराज ने अणुव्रत धारण कर लिए । अपने किए पर पश्चाताप करने लगा । अष्टमी, चतुर्दशी उपवास करता । पारणे के दिन सूखे पत्ते खाकर जीवाणु रहित जल पीकर जीवन बिताने लगा । अब वह कमजोर हो गया , दिन रात चिंतन करता रहता था । उसका शरीर शिथिल हो गया था । एकदिन वह पानी पीने के लिए किसी नदी पर गया उसमें कर्दम था , ज्यों ही वह पानी में उतरा उसका पैर कीचड़ में फंस गया । उसने बहुत जोर लगाया लेकिन निकल नहीं पाया । उसने सोचा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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