Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

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Page 168
________________ /१६७ बना लिया । निशकंटक राज्य चल रहा था । एक बार राजा अरविन्द ने अपनी राज्य की सीमा बढ़ाने के लिए मंत्री मरुभूति को साथ लेकर राजा वज्रवीर्य मण्डलेश्वर पर चढ़ाई कर दी । इधर कमठ ने देखा राज सिंहासन खाली है | मंत्री भी नहीं है । सो अपने को राजा मान कर मनमानी करने लगा । लोगों को डराने धमकाने लगा । बहत आतंक फैलाने लगा । एक दिन उसने मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा को आभूषणों से युक्त सुन्दर वस्त्रों में देखा तो मोहित हो गया । कामविथा में विह्वल होकर तड़पने लगा । उसे प्राप्त करने का उपक्रम करने लगा । उसके बिना बड़ा दुखी और उदास होकर वह अपने बगीचे के लताग्रह में पड़ा था कि उसका मित्र कलहंस वहा आ गया । उसने कमठ की ऐसी दशा देख कर पूछा मित्र उदास और दुखी क्यों हो ? कमठ ने अपने मन की सारी बात मित्र को बता दी और कहा कि तुम्हारे बिना मेरा काम और कौन कर सकता है ? तुम किसी भी तरह से बने मेरी सहायता करो । जब से मैंने मरुभूति की पत्नी को देखा मुझे चैन नहीं है । जब तक मैं उसे प्राप्त न कर लूं मेरा जीवन निष्फल है । __पहले तो मित्र ने समझाने की कोशिश की उसने कहा कि यह काम महा निंदनीय है बहू और बेटी समान होती है | जग हसाई होगी । राजा दंड देगा । ऐसा अशोभनीय काम करना उचित नहीं हैं । पर कमठ ने एक न मानी उसने कहा कि मित्र अगर तुम मेरा जीवन चाहते हो तो किसी बहाने से उसे इस लताग्रह तक ले आओ । कलहंस मरुभूति के महल में गया और वसुन्धरा से बोला कि कमठ बहुत तड़फ रहे है बीमार है बुखार है बगीचे के लताग्रह में पड़े आपको याद कर रहे हैं। उन्हें जाकर सम्हाल लो | वसुन्धरा बीमारी की बात सुनकर शीघ्र ही लताग्रह में पहुँची । हाल चाल पूछने लगी । तभी पापी कमठने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया । वह चिल्लाती रही । मगर कमठने अपनी हवस पूरी करली । यह समाचार नगर में अग्नि की तरह फैल गया । कुछ दिन बाद राजा अरविन्द एवं मंत्री मरुभूति अपनी विजय पताका फैलाते हुए अपने नगर वापिस लौटे । नगर में कमठ के अत्याचार की चर्चा हो रही थी । राजा ने सभी समाचारों को सुना और क्रोधित हो उसने मरुभूति को बुलाया । उसे कमठ के अत्याचारों से अवगत कराया और पूछा बताओ इसे क्या दंड दिया जाय | भातृ स्नेहपूरित हृदय से मरुभूति ने कहा: राजन कमठ का यह पहला अपराध है अतः उसे क्षमा कर देना चाहिए । नीतिकारों का कहना है कि प्रथम अपराध क्षमतव्य होता है । राजा ने कहा मंत्रीजी अगर अपराधियों को बिना दंड दिये छोड़ दिया जाय तो वे और अनेक अपराध करेंगे । इसलिए मैं अपराधी को दंड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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