Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

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Page 165
________________ १६४/पार्श्वपुराण छप्पय । नमो देव अरहंत, सकल तत्त्वास्थभासी ॥ नमों सिद्ध भगवान, ग्यानमूरति अविनासी ।। नमों साध निरग्रंथ, दुबिध परिग्रह-परित्यागी ।। जथाजात जिनलिंग धारि, बन बसे विरागी ।। बंदौं जिनेसभाषित धरम, देय सर्व सुख-सम्पदा ।। ये सार चार तिहुँलोकमैं, करो छेम मंगल सदा ||३३४।। संवत सतरह शतकमैं , और नवासी लीय । सुदि अषाढ़ तिथि पंचमी, ग्रंथ समापत कीय ||३३५।। इति श्रीपार्धपुराणभाषायां भगवनिर्वाणगमनवर्णनं नाम नवमोऽधिकारः । समाप्तोऽयं ग्रन्थः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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