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नौवाँ अधिकार/१३५
स्याद सब्दको अर्थ जिन, कह्यौ कथंचित जान ।। नागरूप नय-विष-हरन, यह जग मंत्र महान ||३२|| ज्यों रससिद्ध कुधातु जग, कंचन होय अनूप ।। स्यादवाद-संजोगतै, सब नय सत्यसरूप ||३३॥
चौपाई। दरवदिष्टि जिय नित्तसरूप | परजय न्याय अथिर चिद्रूप ।। नित्यानित्य कथंचित होय | कह्यौ न जाय कथंचित सोय ||३४|| नित्य अवाचि कथंचित वही । अथिर अवाचि कथंचित सही ।। नित्यानित्य अवाचक जान । कहत कथंचित सब परवान ||३५|| इहिबिध स्यादवाद नयछाहिं । साध्यौ जीव जैनमतमाहिं ॥ और भांति विकलप जे करें । तिनके मत दूषन विसतरै ।।३६।। जीव नाम उपयोगी जान | करता भुगता देहप्रमान || जगतरूप सिवरूप अरूप । ऊरधगमन सुभावसरूप ||३७।।
सोरठा । ये सब नौ अधिकार, जीवसिद्धि कारन कहे ॥ इनको कछु विस्तार, लिखौं जिनागम देखिकै ||३८।।
चौपाई। चार भेद ब्यौहारी प्रान । निहचै एक चेतना जान ।। जो इनसौं नित जीवित रहै । सोई जीव जैनमत कहै ||३९।।
सोरठा । प्रथम आव अवधार, इंद्री सांस उसांस बल || मूल प्रान ये चार, इनके उत्तरभेद दस ।।४०॥
दोहा । पांच प्रान इंद्रीजनित, तीनभेद बलप्रान ।। एक सांस उस्वास गनि आवसहित दस जान ||४१।।
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