Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ भूलो विसरो भूपरो, जो परधन बहु भायो जी ॥ विन दीयै लीजै नहीं, जनम जनम दुखदायो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ॥१७४॥ नौवाँ अधिकार/१४९ ब्याही वनिता होय जो, तासौं कर संतोषो जी ॥ परिहरिये परकामिनी, यासम और न दोषो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ||१७५ || धन-कन कंचन आदि दे, परिग्रह संख्या ठानो जी ॥ तिसना नागिनि वस करो, यह व्रत मंत्र महानो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ॥१७६॥ अवधि दसों दिसि खेतकी, कीजै संवर जानो जी ॥ बाहर पांव न दीजिये, जब लग घटमैं प्रानो जी ।। बारहव्रत बिध बरनऊं ॥१७७॥ कर मरजादा कालकी, करिये देस प्रमानो जी ॥ वन- पुर- सरिता आदि दे, नित्त गमनको थानो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ||१७८|| जहां स्वास्थ नहिं संपजै, उपजै पाप अपारो जी || अनरथदंड वही कह्यौ, त्यागौ पंच प्रकारो जी || बारहव्रत बिध बरनऊं ||१७९॥ सामायिक-विधि आदरो, थल एकांत विचारो जी || उर धरिये सुभ भावना, आरत रौद्र निवारो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ||१८०|| पोषह व्रत आराधिये, चारौं परब - मंझारो जी ॥ चहुबिध भोजन परिहरो, घरआरंभ सब छारो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ||१८१|| भोजन पान तंबोल तिय, खटभूषण बहु एमो जी ॥ भोगजथा उपभोग है, कब इनकौ जम नेमो जी ॥ बारहव्रत बिध बरनऊं ||१८२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175