Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai
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नौवाँ अधिकार/१५७
चौपाई। तब सुरेस उठि विनती करी । हाथ जोर सिर अंजुलि धरी ।। भो जगनायक जग आधार । तीन भवन-जन तारनहार ||२६१।। यह विहार-अवसर भगवान | करिये देव दया उर आन || भविक-जीव-खेती कुम्हलाय । मिथ्या-तपसौं सूखी जाय ||२६२।। भो परमेस अनुग्रह करौ । बानी बरसासौं तप हरो | मोख महापुरके परधान । तुम बिनजारे दयानिधान ।।२६३।। प्रभुसहाय भवि सुखपद लेहिं । आवागमन जलांजुलि देहिं ।। इहिबिध इंद्र प्रार्थना करी । सहसनाम करि थुति विस्तरी ।।२६४।। भयो अनिच्छा-गमन जिनेस । भवि जीवनके भाव विसेस ।। सकल सुरासुर जय जय कियौ । जिनविहार अम्रत-रस पियौ ।।२६५।। गमन-समय औरे बिध भई । समोसरन-रचना खिर गई । चले संग सुर चतुरनिकाय । चउबिध सकल चले सुरराय ॥२६६।। सुरदुंदभि बाजै सुखकार । जिनमंगल गावै सुरनार ।। हाथ धुजाजुत देवकुमार | चले जाहिं नभमैं छबि सार ||२६७।। चहुं दिसि चार चारसौ कोस । होय सुभिच्छ सदा निर्दोस ।। नभ-विहार जिनवरकै होय | जीवघात तहां करै न कोय ॥२६८।। सब उपसर्ग रहित भगवंत । निर-आहार आयु-परजंत ।। चतुरानन देखै संसार । सब विद्यापति परम उदार ॥२६९।। प्रभुके तनकी परै न छाहिं । पलक पलकसौं लागै नाहिं ।। नख अरु केस बढ़े नहिं जास | ये दस केवल-अतिसय भास ||२७०|| भाषा सकल अर्थ मागधी । खिरै सकल संसय-हर सधी ।। नर पसु जातिविरोधी जीव । सब उर मैत्री धरै सदीव ।।२७१।। नाना जाति बिरछ दुख दलैं । सब रितुके फल फूलनि फलैं ॥ प्रभु संचार-भूमि मनिमई । दर्पनवत आगम बरनई ॥२७२।।
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