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१३०/पार्श्वपुराण
यह उर जानत निहचै कीन । जिन-महिमा बरनन हम हीन ॥ पै तुम भगति करै बाचाल । तिसवस होय गहूं गुनमाल ||१४५|| जय तीर्थंकर त्रिभुवनधनी । जग चंद्रोपम चूड़ामनी ||
जय जय परम धरम दातार । करम कुलाचल चूरनहार || १४६ || जय सिवकामिनि कंत महंत । अतुल अनंत चतुष्टयवंत ॥ जय जग आसभरन बड़भाग । सिवलछमीके सुभग सुहाग || १४७॥
जय जय धर्म धुजाधर धीर । सुरंग मुकतिदाता वर वीर ॥ जय रतनत्रय रतनकरंड | जय जिन तारनतरन तरंड ॥१४८॥
जय जय समोसरन सिंगार । जय संसय-वन दहन तुसार || जय जय निर्विकार निर्दोष । जय अनंत गुन मानिक कोष ॥१४९॥
जय जय ब्रह्मचरजदल साज । कामसुभट - विजयी भटराज || जय जय मोह-महानग करी । जय जय मदकुंजर केहरी || १५०||
क्रोधमहानल मेघ प्रचंड | मान-महीधर - दामिनि दंड ॥ मायाबेल धनंजय दाह । लोभ-सलिल सोषक दिननाह || १५१||
तुम गुनसागर अगम अपार । ग्यान जिहाज न पहुंचे पार || तट ही तट पर डोलत सोय । स्वास्थ सिद्ध तहांही होय ॥१५२॥
प्रभु तुम कीर्ति बेल बहु बढ़ी । जतन बिना जगमंडप चढ़ी || और अदेव सुजस नित चहैं । ये अपने घरही जस लहैं ||१५३॥
जगतजीव घूमैं बिनग्यान । कीनैं मोह महा विषपान || तुमसेवा विषनासन जरी । यह मुनिजन मिलि निहचै करी ॥१५४॥
जन्मलता मिथ्यामत मूल । जामन-मरन लगैं जिहि फूल || सो कही बिन भगतिकुठार । कटै नहीं दुख-फल- दातार ।।१५५॥
कलपतरोवर चित्राबेल । काम पोरसा नौनिधि मेल || चिंतामनि पारस पाषान । पुन्य पदारथ और महान || १५६ ॥
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