Book Title: Parishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 12
________________ नीति, स्तुति, तीर्थंकरों आदि उत्तम पुरुषोंके पवित्र जीवनचरित्रादि विषयोंके ग्रंथ बड़ीही प्रशस्त शैलीसे लिखे हैं । यह "परिशिष्ट पर्व" ग्रंथ भी उन्हीं महात्माओंकी रचना है, ऐसे ग्रंथोंके पढ़नेसे पाठकोंको बहुत कुछ लाभ होसकता है । यदि संसारमें मनुष्य अपने जीवनको पवित्र बना सकता है तो आदर्शजीवी सत्पुरुषोंके पवित्र जीवनचरित्रोंका अनुकरण करके ही बना सकता है, इस लिए पवित्र मनुष्यजीवन बनानेमें आदर्शजीवी पुरुषोंके सच्चरित्र वाँचनेकी अत्यावश्यक्ता है दूसरे यह भी बात है कि जिस जाति या धर्मका इतिहास प्रकाशमें आया है उस जाति, धर्मने संसारमें शीघ्रही तरकी पाई है, अत एक आधुनिक जमानेमें इतिहास पूर्ण आदर्शजीवी पुरुषोंकी जीवनचरिया समस्त भाषाओंमें लिखनेकी परमावश्यक्ता है । जिस मज़हबका प्राचीन इतिहास संसारकी समस्त भाषाओंमें होता है वह मज़हब अवश्यमेव शीघ्रही समुन्नतिके शिखरोंपर चढ़ जाता है । हमारे पवित्र जैनधर्मका प्राचीन इतिहास संस्कृत, प्राकृत या कुछ गुर्जर भाषाके सिवाय अन्य भाषाओंमें न होनेसे ही मारवाड़, मेवाड़ मालवा, मध्यप्रान्त, पंजाब आदि देशनिवासी हमारे जैनबन्धु भी अपने इतिहाससे वंचित हैं तो फिर जैनेतर लोगोंमें जैन इतिहासकी प्रसिद्धिकी तो बातही क्या? । हिन्दी भाषा भाषी हमारे जैनबंधु जैन हिन्दी साहित्यके लिए ऐसे तरस रहे हैं कि जैसे चातक पक्षी मेघके लिए, मगर आश्चर्यकी बात है कि इस बातको जानकर भी हमारे जैन हिन्दी विद्वान् अपनी ओजस्विनी लेखनीको चिरकालसे विरामही दे रहे हैं । हमारी राय है कि जो व्यक्ति इस सुअवसरमें अपने इतिहास या साहित्यको प्रकाशित करेगी अवश्यमेव वह अपनी तरक्की पायगी।

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