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भ्यायशास्त्रे सुबोषटीकायां तृतीयः परिच्छेदः। ४६
साध्य के लक्षण में प्रसिद्ध विशेषण का फलঅষিব্রিাহ্রাল ভাবে প্রায় দ্বিत्वसिद्धपदम् ॥१७॥
अर्थ-संदिग्ध, विपर्यस्त और अव्युत्पन्न पदार्थों के साध्यता साबित करने के लिये साध्य के लक्षण में प्रसिद्ध पद दिया गया है ।१७।
संस्कृतार्थ-संशयविपर्ययामध्यवसायगोचराणां पदार्थानां सरध्यत्वसंकल्पनार्थ साध्यलक्षणेऽसिद्धपदमुपादीयते ॥१७॥
विशेषार्थ-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रहित वस्तु स्वयं सिद्ध होती है, उसके सिद्ध करने का प्रयास मूर्खता और पिष्टपेषण ही है। इसलिये जिसमें संशयादि हों उसे ही सिद्ध करना उचित है, इस बात को बतलाने के लिये साध्य के लक्षण में प्रसिद्ध पद दिया गया है। ॥१७॥ साध्य के लक्षण में इष्ट और अबाधित पद का सार्थक्य
লিভাৰিজামিযীঃ লা লা জুবিলীন बाषितवचनम् ॥१८॥
अर्थ-अनिष्ट तथा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित पदार्थों के साध्य पने का निषेध करने के लिये साध्य को इष्ट तथा अबाधित विशेषण दिये गये हैं ॥१८॥
संस्कृतार्थ-अनिष्टस्य प्रत्यक्षादिबाषितस्य च पदार्थस्य साध्यत्वनिरासार्थम् इष्टाबाधितपदयोरुपादनं कृतम् ॥१८॥
विशेषार्थ-जिस वस्तु को वादी सिद्ध नहीं करना चाहता है उसे अनिष्ट कहते हैं। उसे सिद्ध करने का प्रयास अप्राकरणिक और असामयिक होता है। इसलिये ऐसी वस्तु साध्य नहीं हो सकती। इसी बात
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