Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 50
________________ ५४ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे विशेषार्थ-- जहाँ-जहाँ धूम होता है वहाँ-वहाँ पर्वत ही अग्नि बाला हो, सो तो ठीक नहीं, किन्तु कहीं पर्वत रहेगा, कहीं रसोईघर रहेगा और कहीं तेल का मिल रहेगा, इसलिये व्याप्तिकाल में धर्मविशिष्ट धर्मी (पक्ष) साध्य नहीं हो सकता ॥२८॥ पक्ष का प्रयोग करने की आवश्यकता--- ঘাল্লাঘাবলীলায় যাত্রলম্যান্থি অস্ত্র वचनम् ॥३०॥ अर्थ--साध्य रूप धर्म के प्राधार के विषय में उत्पन्न हुये सन्देह को दूर करने के लिये स्वतः सिद्ध भी पक्ष का प्रयोग किया जाता है ॥३०॥ संस्कृतार्थ -साध्यरूपधर्माधिकरणसमुत्यसंशयनिवारणाय स्वयंसिद्धस्यापि पक्षस्य प्रयोगः प्रावश्यकः ॥३०॥ विशेषार्थ- साध्य, बिना आश्रय के रह नहीं सकता, इसलिये साध्य के बोलने से ही पक्ष सिद्ध हो जावेगा फिर पक्ष के प्रयोग की आवश्यकता नहीं। इस शंका का उत्तर इस सूत्र के द्वारा दिया गया है कि - यखपि साध्या के कहने मात्र से ही पक्ष उपस्थित हो जाता है तथापि उस पक्ष में सन्देह दूर करने के लिये स्वयं सिद्ध भी पक्ष का प्रयोग किया जाता है। जैसे 'अग्निमत्त्व' साध्य की सिद्धि करते समय पर्वत, रसोई घर या तेल का कारखाना आदि जगह में उसके रहने का सन्देह होता है, क्योंकि उक्त तीनों जगह 'अग्निमत्त्व' रह सकता है। अतः 'अग्निमत्त्व' साध्य वास्तव में कहाँ साधना है इसका निश्चय करने के लिये ही पक्ष का प्रयोग (उच्चारण) होता है ॥३०॥ पक्ष का प्रयोग करने की प्रावश्यकता का दृष्टान्त লিলি লক্ষ্মীলায় জীবনে। JAI.2 . 1 - - 241521

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