Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 126
________________ श्रावश्यक निवन्या माला इस अनुमान में 'चक्षु' पद से कौनसी चक्षु को पक्ष बनाया है ? लौकिक (गोलकरूप) चक्षु को अथवा अलौकिक (किरणरूप) चक्षु को? पहले विकल्प में, हेतु कालात्यापदिष्ट (बाधितविषय नाम का हेत्वाभास) है; क्योंकि गोलकरूप लौकिक चक्षु विषय के पास जाती हुई किसी को भी प्रतीत न होने से उसकी विषयप्राप्ति प्रत्यक्ष से बाधित है। दूसरे विकल्प में, हेतु प्राश्रयासिद्ध है। क्योंकि किरणरूप प्रलोकिक चक्षु अभी तक सिद्ध नहीं है। दूसरी बात यह है, कि वृक्ष की शाखा और चन्द्रमा का एक ही काल में ग्रहण होने से चक्षु अशाप्यकारी ही प्रसिद्ध होती है । अत: उपर्युक्त अनुमानगत हेतु कालात्यापदिष्ट और आश्रयासिद्ध होने के साथ ही प्रकरणसम (सत्रातिपक्ष) भी है । इस प्रकार सन्निकर्ष के बिना भी चक्षु के द्वारा रूपज्ञान होता है। इसलिये सन्निकर्ष अव्याप्त होने से प्रत्यक्ष का स्वरूप नहीं है। यह बात सिख हो गई। शंका-समाधानपूर्वक सर्वज्ञ की सिद्धि शंका--सर्वशता ही जब अप्रसिद्ध है तब आप यह कैसे कहते हैं कि 'अरिहन्त भगवान् सर्वज्ञ हैं ? क्योंकि जो सामान्यतया कहीं भी प्रसिद्ध नहीं है उसका किसी खास जगह में व्यवस्थापन नहीं हो सकता है ? -.समाधान- नहीं; सर्वज्ञता अनुमान से सिद्ध है। वह अनुमान इस प्रकार है. सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं, क्योंकि वे अनुमान से जाने जाते हैं। जैसे अग्नि प्रादि पदार्थ । स्वामी समन्तभद्र ने भी सहाभाष्य के प्रारम्भ में प्राप्तमीमांसाप्रकरण में कहा है- "सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष है, क्योंकि वे अनुमान से जाने जाते हैं ? जैसे अग्नि प्रादि । इस अनुमान से सर्वज्ञ अले प्रकार सिद्ध होता है।" सूक्ष्म पदार्थ वे हैं जो स्वभाव से विप्रकृष्ट है-दूर हैं, जैसे परमाणु आदि । अन्तरित वे हैं जो काल से विकृष्ट हैं, जैसे राम आदि । दूर से हैं जो देश से विकृष्ट हैं, जैसे मेरु प्राहि ।

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